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भगवान बाहुबली महामस्तकाभिषेक : एक रिपोर्ताज
लेखिका के महोत्सव का शब्दचित्र हमारे सामने प्रस्तुत किया है । जिन्हें देखने का सौभाग्य नहीं मिला वे भी कल्पना में देख कर अपना मानस पवित्र कर सकते हैं ।
-सम्पादक
प्रथमानुयोग के ग्रंथों के आलोक में इतिहास की ओर झांके तो ज्ञात होगा कि हजारों वर्ष पूर्व इस भारत भूमि पर अयोध्या के राजा ऋषभदेव इस अवसर्पिरिण काल के प्रथम तीर्थंकर हुये । उनके सौ पुत्र व दो पुत्रियां थीं । भरत ऋषभदेव के ज्येष्ठ पुत्र थे, बाहुबली भरत के छोटे भ्राता थे । निमित्त के संयोग से राजा ऋषभदेव को वैराग्य उत्पन्न हो गया । वे अपना राज-पाट अपने समस्त पुत्रों में विभक्त कर स्वयं शाश्वत सत्य की खोज हेतु साधना में जुट गये। पिता से उत्तराधिकार की प्राप्ति के पश्चात् महत्त्वाकांक्षी भरत छह- खण्ड पृथ्वी विजित कर चक्रवर्ती सम्राट बनने की प्राकांक्षा पूर्ण करने हेतु समर के लिये निकल पड़े । सभी राजाओं ने उनकी अधीनता स्वीकार कर ली, परन्तु उनके लघु भ्राता बाहुबली ने पूर्ण विनम्रता व सम्मान के साथ अपने बड़ े भ्राता (भरत) का आधिपत्य स्वीकार नहीं किया । अपने पिता से प्राप्त राज्य पर शासन करना उनका अधिकार था । अपने अधिकार का हनन होना उन्हें स्वीकार्य न हुआ । उन्होंने भरत की अधीनता स्वीकार न कर अपने अधिकारों की रक्षार्थ उन्हें चुनौती दी । परिणामतः होने वाले युद्ध की
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प्रीति जैन
विभीषिका सुयोग्य मंत्रियों की मन्त्ररणा के फलस्वरूप टल गई। दोनों भ्रातानों में सर्वोच्चशक्ति के निर्णय हेतु दृष्टि-युद्ध, जल-युद्ध व मल्ल-युद्ध हुये जिसमें भरत विजयी न हुये, बाहुबली ने उन्हें पराजित कर दिया । पराजय की क्षुब्धता असह्य हो गई । भरत ने बाहुबली पर चक्र-प्रायुत्र का प्रहार कर दिया । पर यह क्या ? चक्र बाहुबली की प्रदक्षिणा देकर पुन: लौट आया। यह देखकर उपस्थित मंत्री गण एवं प्रजा भरत के इस कृत्य को धिक्कारने लगी । बाहुबली सोचने लगे-ओह ! शक्ति की लालसा और शासन का लोभ व्यक्ति का विवेक हर लेता है, वह अपने ही भाई के प्राण हरने के लिये उतारू हो जाता है। उन्हें राज्य की, संसार की, लोक के रिश्ते-नातों की असारता का निश्चय हो आया और इन सब के प्रति वैराग्य उत्पन्न हो गया । उन्होंने राज-पाट भरत को सौंप दिया और वन में जाकर दिगम्बर दीक्षा धारण करली |
साधना में लीन बाहुबली को लक्ष्य की प्राप्ति नहीं हो पा रही थी । मैं, भरत की भूमि पर खड़ा हूं' -भाव का यह एक कण अटक रहा था, शल्य बन कर खटक रहा था। मान की इस तनिक सी
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