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नता है कि सौन्दर्य बोध के समक्ष श्रद्धा से, माथा हमारे लिये, इस पीढी के लिये गौरव की बात है झुक जाता है । श्रवणबेलगोला आज हमारी कि हम भगवान बाहुबली की इस मूरत के हजार सांस्कृतिक प्रास्थानों का केन्द्र बन गया है। वर्ष मना रहे हैं, अभिषेक कर रह हैं। जीवन्त रूप से जहां भगवान स्वयं मूर्तिमान हो, भगवान बाहुबली के श्रीचरणों में बारम्बार वह धरती, वह क्षेत्र पूजनीय है, वन्दनीय है। प्रणाम ।
"हे आत्मन् ! तू ही अपने कर्मों को बाँधता है, उनके फलों को तू ही भोगता है और तू ही उन कर्मों को क्षय करने की क्षमता से सम्पन्न है। इस प्रकार तेरी मुक्ति तेरे हाथ में है, उसके लिये क्यों नहीं चेष्टा करता है ?"
-क्षत्र चूड़ामणि
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