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उपदेश सन्मति ने दिये हैं
- 0 हास्य कवि - हजारीलाल 'काका'
__ पो. सकरार, जिला झांसी (उ.प्र.)
सृष्टि के प्रारम्भ से ही जो उपेक्षित हो जिये हैं, आज उन पर सांत्वना के गीत लिख, क्या कर सकूगा? ..
दर्द की सौगात ही जिनको विरासत में मिली है, आश जिनकी वेदनाओं की हिफाजत में पली है, पासूओं का ताज मानव ने सदा जिनको लगाया
जिंदगी जिनकी व्यथा के विकट सांचों में ढली है । जिनने जन्म से मृत्यु तक अभिशाप के प्याले पिये हैं, आज उन पर सान्त्वना के गीत लिख, क्या कर सकूगा?
जिनके लिये श्री कृष्ण ने गोपाल बन गायें चराई, और नंदी साथ ले महादेव ने धूनी रमाई, कच्छ, मच्छ, वाराह के अवतार, सब से कह रहे हैं
पीर जैसी तुम्हें होती समझलो वैसी पराई । खुद जीग्रो जीने दो ये उपदेश सन्मति ने दिये हैं, आज उनपर सान्त्वना के गीत लिख, क्या कर सकूगा?
अर्थ लिप्सा में हुआ है आज मानव पूण अंधा, काट करके अब पराई देह का करता है धंधा, कलपती 'काका' कराहें शांति पाने बेबसों की
हो गया हैवान या अल्लाह तेरा भक्त बंदा । जिनके लिए तूने धरा पर हर सुलभ साधन किये हैं, आज उनपर सान्त्वना के गीत लिख, क्या कर सकूगा?
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