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महावीर से हम कितनी दूर कितने पास =
0 ज्ञानचन्द विल्टीवाला
महावीर महावीर है और हम हम ! दोनों में इतनी दूरी है कि लगता है कभी पट नहीं सकती। वे अपने शुद्ध प्रानन्द में मग्न है हम अपनी अशुद्धि में तड़प रहें हैं।
उनसा बन जाने में कुछ संतोष भी मिल जायेगा; पर पूर्स संतोष नहींहमारे में छिपा वैभव पूरा उबड़ नहीं पायेगा, महावीर बनना फिर भी शेष रह जायेगा। महावीर के बाद क्या ? कुछ नहींमहावीर अन्तिम है।
यदि शुद्धि को 'महावीर' कहें तो महावीर हममें छिपी एक संभावना है जिसे प्रकट किये बिना हम छटपटाते ही रहेंगेहमें महावीर बनना ही होगा और कुछ बनते रहने से हमें शान्ति नहीं मिल पायेगी।
शुद्धि का एक ही प्रकार है तो अशुद्धि के सहस्त्र सहस्त्र रूप हैं। विविध धर्म नेता, राजनेता, देवी देवताछोटे बड़े अनेक रूप । हमें किन्हीं को आदर्श मान
सोचियेकिसी ने राजपाट छोड़ा घर बार छोड़ा और लंगोट लगा ली। पर अभी तो
और कदम शेष है लंगोट त्याग नग्न होना शेष है। महावीर नग्न थेनग्नता से आगे कुछ नहीं लग्नता पूर्णता है। सोचियेकिसी ने ईश्वर भक्ति की बात कह कर हमें भक्त बना दियाएक अधूरी स्थिति में
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