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झिझकते हैं, अतः महावीर को समझना नहीं चाहते। हमें महावीर को समझने के लिए सब और हुए गैर-महावीर को उतार फेंकना होगा, तब महावीर के महावीरत्व को अनुभव कर सकेगें महावीर को समझ सकेगें। मेरा तात्पर्य है कि कषाय की हर परत से पर पदार्थ के हर आरोप से चित्त को मुक्त कर ही हम महावीर को समझ सकेगें।
(ज) आखीर आज महावीर के 'अनुयायी' इतने हतप्रभ किंकर्तव्य विमूढ क्यों हैं ? वे संख्या में कम हैयह बुरी बात है। वे प्रतिष्ठा प्रभाव में दीन हो रहे हैं यह और भी बुरी बात है ।
उनमें परस्पर वात्सल्य, प्रेम, संगठन की कमी हैयह सबसे बुरी बात है।
समाज में इजतनी इतनी बुराईयों का संग्रह हो रहा है इसका एक ही कारण है कि हममें महावीर और उनके मार्ग के प्रति
आस्था नहीं है, हम उसे समझते नहीं, सच्चाई से उस पर चलते नहीं हैं। दुर्भाग्य यह है कि बुराईयों से परेशान होकर अन्यों की, असंयतों की नकल करते हैं और इस तरह महावीर के मार्ग से
और दूर हटते हैं। बच्चे बूढ़े सभी यदि महावीर के मार्ग पर पूरी श्रद्धा से चलें तो जीवन में पुन: प्रोज तेज प्रकट होते अन्तर में इसकी धार बहते देर नहीं है।
बिल्टीवाला भवन अजायब घर के पीछे, जयपुर-3
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