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महावीर का नारा
- प्रशन्न कुमार सेठी जिसने निज में निज को ध्याया, उसने सम्यक् धारा हैं । 'राग द्वेष' को दूर करो, यह महावीर का नारा है || भला काम करता है कोई, नहीं प्रशंसा पाने को । for इसलिए क्योंकि भलाई किये बिना मुरझाने को । है एहसानन्द वह उसका, जो दे भला कमाने को । ऊंचे दर्जे की खुराक यह मिली भलाई, खाने को ।
मान बड़ाई का ओछापन, कुटिलजनों की कारा है । 'राग द्वेष' को दूर करो, यह महावीर का नारा है । यदि नियमों से नहीं चले तो, जग का कार-बार छूटे । पर अन्धानुकरण में वही नियम, ग्राफत बन कर फूटे । बिना विवेक रूढ़ियां रूधे, कर्म काल बन कर टूटे । नहीं डकैत दीन के डाका डाले, धनिकों को लूटे ।
समझ सही करनी होगी, क्या तुच्छ और क्या तारा है । राग द्वेष को दूर करो, यह महावीर का नारा है || भोग कभी भी धर्म न बनता, त्याग धर्म का मूल है । पश्चाताप सही प्रायश्चित, काम-वासना शूल है । वृद्धि सूद की बन्द करे, ऐसा प्रायश्चित रूल है । है मस्तिष्क बुद्धि का स्वामी, श्रद्धा दिल का फूल है ।
बुद्धिमान भयभीत हार से, विश्वासी कब हारा है । 'राग द्वेष को दूर करो, यह महावीर का नारा है || भाई से अपनापन रखलें, इसमें कौन बड़ाई है । बड़ा वही जो दुश्मन से भी लड़ता नहीं लड़ाई है । सत्य अहिंसा - शुन्य न होता, हिंसा झूठ जड़ाई है । सागर में मिल बिन्दु स्वयं सागर है, कहां कड़ाई है ।
सत्य साध्य है और अहिंसा साधन, सही विचारा है । 'राग द्वेष' को दूर करो, यह महावीर का नारा है । मोटर, महल, रेडियो, टेलीवीजन, सिपाही साथ हो । अखबारों में फोटू छपती, गाई जाती गाथा हो । कहलाता वह पुण्यवान किस कारण, नगरी नाथ हो । और लंगोटी ही जिसने छोड़ी क्यों पापी - हाथ हो । पैसा नहीं पुण्य फल कोई, पाप परिग्रह सारा है । राग द्वेष को दूर करो, यह महावीर का नारा है ।। सेठी भवन, चुरुकों का रास्ता, जयपुर
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