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पशु क्ररता - एक विचारणीय विषय
0 हीराचन्द बैद उपाध्यक्ष पशु क्रूरता निवारण समिति, जयपुर
पुनः पुन: मांसाहार के विरुद्ध कहा जाता रहा है, लिखा जाता रहा है । सब जानते है जीव दया के समान व्यवहार में धर्म दूसरा नहीं है । सभी संत और समझदार मनुष्य यह ही मानव को समझाते रहे हैं पर दुःख का विषय है कि मांसाहार की राक्षसी वृत्ति अभी घटने के स्थान पर उल्टी बढ़ ही रही है । आवश्यकता हैं हम फैशन के नाम पर लाई जा रही प्रत्येक वस्तु को, आवश्यकता के नाम पर प्रयोग में लाये जा रहे खाद्य पदार्थ और औषधि प्रादि को जीव दया की दृष्टि से परख कर ही काम में लें; यह हमारी मानवता का तकाजा है।
-- सम्पादक
भारत देश अतीत से अहिंसा प्रधान देश है। प्रति अरूचि, यहुदी सम्प्रदाय की इसनिश शाखा प्राणी मात्र के प्रति दया और करूणा का भाव द्वारा अपनाया गया कठोर शाकाहार, नामधारी बना रहे, इस हेतु सब ही धर्मों के महान पुरूषों सिक्खों का अाज भी शुद्ध शाकाहारी होना, ने सदैव ही हम लोगो को जागृत किया है। गाय इस्लाम के पवित्र मक्का स्थित कस्बे के चारों ओर को घास, कुत्तों को रोटी, और कबूतरों को ज्वार कई मील को परिधि में किसी भी पशु-पक्षी की डालने की परम्परा हमें यही बोध देती है कि निरीह हत्या नहीं करने का नियम और हज्ज काल में व मूक पशु-पक्षियों के प्रति हमारे हृदय में दया- हाजियों का मद्य-मांस का सर्वथा त्यागी रहना उमड़ती रहें, इसी के लिए तो ये सब प्रतीक बने किस दिशा का सूचन करती है, यह सहज ही हैं । जैन तो सदैव अहिंसा के उपासक रहे ही हैं, जाना जा सकता है। पर वैष्णव भी अहिंसा के बहुत बड़े पुजारी रहें हैं। इस देश के कुछ धर्मावलम्बी चाहे स्वार्थवश पर आज मांसाहार के लिए जानवरों पर की व स्वादवश अहिंसा पर विशेष ध्यान न दे पाये जाने वाली क्रूरता की कहानी इस देश में कलंक हों, पर समय-समय पर सब धर्मों में ही ऐसे संत रूप बन रही है। मांस, अंडे, मछली आदि के व प्रचारक हुए हैं, जिन्होंने इस सम्बन्ध में खूब सेवन की प्रवृत्ति कितनी बढ़ती जा रही है तथा उपदेश की गंगा बहाई हैं तथा उसका परिणाम सरकारी स्तर पर भी इस प्रवृत्ति को कितना भी पाया है। सम्राट अकबर की मांसाहार के प्रोत्साहन मिल रहा है, यह सब देख कर यह
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