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महावीर ने पदार्थ के प्रति प्रासक्त होने की बात स्पष्ट की थी । जब तक मूर्छा और ममत्व है तब तक पदार्थ की निस्सारता स्पष्ठं नहीं हो पाती । पदार्थ आखिर पदार्थ ही है । स्वार्थ हठे कि परमार्थ ऊपर उठकर आता है। इससे प्रारणी - सौहार्द उत्पन्न होता है । जीव-जीव के प्रति सहिष्णुता उत्पन्न होती है ।
तीर्थंकर महावीर का यह उपदेश तरकालीन समुदाय और समाज को जाग्रम करने में जितना सम्पन्न हुआ आज भी उसकी श्रावश्यकता उतनी ही अधिक अनुभव हो उठी है । प्राज का उठा हुम्रा व्यक्ति भी परमुखापेक्षी होने लगा है। उसमें अपने पुरुषार्थं के प्रति अनास्था उत्पन्न हो उठी है।
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आज की जीवन धारणा में आडम्बर और प्रदर्शन पुरजोर प्रवाह से बढ़ रहा है । प्राणी एतदर्थ खिन्न है और विपन्न भी। वह प्रभाव में जी उठा है । परिणाम स्वरूप उसे प्रभाव के प्रति आकर्षण है । प्रत्येक घर में ड्राईंग रूम परन्तु घर का प्रत्येक कमरा ड्राईंग रूम नहीं है । सजावट सीमित है । शेष कमरे उसे देखकर कुछ का कुछ अनुभव कर बैठे हैं। दीनता एतदर्थं उनमें मुखर हो उठी है । जीवन प्रखरता हेतु भगवान महावीर का समतावाद आज ज्ञानपूर्वक अपनाने की महती आवश्यकता है। तभी हमारा जीवन आडम्बरों और रूड़ियों से मुक्त हो सकता है । तभी हमारी जीवनचर्या श्रम-साधना सार्थक होगी अन्यथा यह स्वर्णिम मानवी जीवन यों ही बिखर जाने को है । बिखरता ही जवेगा ।
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एक भूल
" परिग्रह, लोभ, क्रोध, माया, मोह, द्वेष व घृणा पर आधारित कार्यों में संलग्न व्यक्ति भी खान पान में हिंसा से विरत रहने के आधार मात्र पर अपने को पूर्ण अहिंसक मानकर महावीर के कट्टर अनुयायी होने का दम भरते है ".."
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पौली कोठी, प्रागरा रोड़, अलीगढ़ 202001
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रविन्द्र मालव
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