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वर्तमान सन्दर्भ में भगवान महावीर
महावीर का दर्शन शाश्वत है। उसके अनुसार " आपके अन्तर्जगत में और आपके बहिर्जगत में जो भी घटित होता है, उसका दायित्व आपके ऊपर ही है । "
यह समझ लेने पर हम अवश्य ही अपनी समस्याओं से आज भी मुक्त हो सकते हैं ।
राष्ट्र प्रति वर्ष महावीर जयन्ती मनाता है । महावीर महापुरुष या भगवान साधना के मनन्तर हुए, किन्तु इसके पूर्व वे एक व्यक्ति थे । उनके भगवान बनने का मूल मन्त्र यही था कि वे सर्वप्रथम व्यक्ति बने । व्यक्ति वह होता है जो अपने व्यक्तित्व को पहचान लेता है। जहां व्यक्तता है, अपनी सम्पूर्णता का प्रकाशन है, वहीं व्यक्तित्व है । व्यक्तित्व किसी देह, कर्म या भौतिक शक्ति का नाम नहीं है; किन्तु पदार्थ की शक्ति का पूर्ण रूप से व्यक्त होना है । जो अनन्त की श्रव्यक्ता को व्यक्त कर उसे आलोकित करता है, वह अपने व्यक्तित्व को प्रकाशित करता है । व्यक्तित्व की प्रभा स्वयंप्रभा होती है जो व्यक्ति से भिन्न नहीं होती ।
व्यक्ति किसे कहना और किसे नहीं कहना - यह एक शोध-खोज का विषय हो सकता है । किन्तु इसमें कोई सन्देह नहीं है कि महावीर एक
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[D] डा० देवेन्द्रकुमार शास्त्री
व्यक्ति थे । अनन्त की सम्पूर्ण सत्ता से वे परिचित थे । विश्व के सारे रहस्य उनको व्यक्त हो गए थे । उन्होंने पदार्थ की अनन्त शक्तियों को पहचान लिया था । विश्व की समस्त भौतिक शक्तियों से परे आत्मलोक के अनन्त चिन्मय प्रदेश में सत्य के साक्षात्कार से सच्चिदानन्द को उपलब्ध हो चुके थे ।
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-सम्पादक
अपने अनन्तदर्शन, अनन्तज्ञान और अनन्त बल के आधार पर जिस सत्य का उन्होंने निर्वाचन किया था, वह आध्यात्मिक था । विशुद्ध गणित की भांति श्रात्मा, जगत् तथा जीवन के विविध रहस्यों को अध्यात्म-सूत्रों में निबद्ध किया गया । अध्यात्म का विषय हमारे, आपके सबसे अधिक निकट होने पर भी रहस्यात्मक होने से अनुभव में नहीं आ पाया । इसलिये उसके संकेतों से भाषात्मक शब्दावली से हम अपरिचित रहे । अध्यात्म का यह रहस्य केवल चेतनालोक तक ही सीमित नहीं रहा । हमारे
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