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भगवान महावीर का ध्यान नित्य नियमित रुप से करें।
0 श्री अगरचन्द नाहटा
विद्वान लेखक ने ध्यान के विभिन्न प्रयोगों पर हमारा ध्यान खीचा है। धर्म का पथ तल्लीनता का पथ है और ध्यान उसी का पर्यायवाची । धर्म की सार्थकता और फल इसी में निहित है।
-सम्पादक
जैन धर्म में सर्वोच्च पूज्य स्थान तीर्थंकरों का विशेष नहीं, गुण विशिष्ट व्यक्ति हैं। ऐसे एक है। भगवान् ऋषभदेव से भ० महावीर तक 24 नहीं अनन्त व्यक्ति या आत्माएं परमात्म पद प्राप्त तीर्थकर इस अवसर्पिणी काल में हुए हैं। करके सिद्ध बृद्ध व मुक्त हो चुके हैं और उनका उन सबका नित्य स्मरण करना, उनकी पुनरागमन नहीं होता। भक्ति व गुणानुवाद करना प्रत्येक जैनी का परमावश्यक कर्तव्य हैं। वे तीर्थकर केवल- तीर्थंकरों की वाणी को धारण करने वाले, ज्ञानी, वीतराग अर्हन्त हैं। 'अहं' शब्द का उसका प्रचार और जीवन में उतारने वाले प्राचार्य अर्थ है--पूजा के योग्य या पूजनीय । जैन धर्म में कहलाते हैं। तीर्थंकरों की अविद्यमानता में प्राचार्य राग बदेष पर विजय प्राप्त करने वाले महापुरुष ही तीर्थंकरों का धर्मशासन चलाते हैं। वे स्वयं को 'जिन' कहते हैं व उन्हीं के अनुयायी होने से सत् व शुद्ध प्राचार का पालन करते हैं एवं दूसरों हम 'जैन' कहलाते हैं। इसलिए राग व द्वेष पर को भी सदाचार में प्रवृत्त करते हैं । इसी तरह विजय प्राप्त करना, वीतरागी बनने व समभावी जो स्वयं प्रागमादि शास्त्रों को पढ़ते हैं व दूसरों होना प्रत्येक जैनी का लक्ष्य होना चाहिए।
को पढ़ाते हैं उनको पाठक या उपाध्याय कहा
जाता है । जो साधु आचार का पालन करते हैं, अहंत तीर्थ कर जब पाठों कर्मों का क्षय करके साधना में रत या प्रवृत्त रहते हैं उन्हें साधु कहा सिद्ध हो जाते हैं तब उनके जन्म, जरा, मरण जाता है। ऐसे विशिष्ट गुणों व पदों पर जो प्रारूढ़
आदि समस्त दुःख समाप्त हो जाते हैं, क्योंकि है, उन्हें 'पंच परमेष्टि' कहते हैं । जो नमस्कार संसार में दु.खों का कारण हमारे कर्म व शरीर किया जाता है. उस सत्र-पाठ का नाम 'नवकार हैं। सिद्धावस्था में न कर्म रहते हैं न शरीर, अतः मंत्र या नमस्कार मंत्र' कहा जाता है, जो जैन धर्म पूर्णानन्द प्राप्त होता है। फिर इस संसार में जन्म का सबसे बड़ा मंत्र है। उसका जप व ध्यान नित्य लेने या आने का कोई कारण ही नहीं रहता। व नियमित रूप से करना चाहिए। अन्य सम्प्रदायों वाले भगवान् पुनः अवतार लेते हैं, पर जैन धर्म उस अवतारवाद को नहीं मानता। - इन पंच परमेष्ठियों के साथ मोक्ष मार्ग के उसकी यह मान्यता है कि भगवान् कोई एक व्यक्ति साधन रूप सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चरित्र एवं तप, इन
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