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प्रेरणा के पुञ्ज - भगवान महावीर
लादूलाल जैन एम. ए, बी. टी., साहित्यरत्न
महापुरुषों के जीवन प्रेरणा के स्रोत होते हैं। मानव सभी योनियों में भ्रमण किया। त्रसउनके बताये मार्ग का अनुसरण कर मानव उनके स्थावर सभी योनियों के दुःख उन्होंने भोगे । समान बन सकता है। भगवान महावीर का जीवन
___ एक भव में वे सिंह हुये । पशुओं का मारना हमारे लिये प्रेरणा का पुज है। उनके महावीर
उनके जीवन का साधारण क्रम था। यह दो बनने के पूर्व के भवों को यदि हम बारीकी से देखें
चारणऋद्धि धारी मुनियों की प्रेरणा से उनके तो हमें ज्ञात होगा कि किस प्रकार एक साधारण
जीवन मे मोड़ आया। घोर हिंसक पशू सिंह ने प्राणी की स्थिति से उठते, गिरते उन्होंने महा
भी अपने जीवन-क्रम को बदला। पांचों पापों का वीरत्व को प्राप्त किया।
प्रांशिक त्याग किया। आइये, उनके वु छ भवों का सूक्ष्म निरीक्षण
सम्यक श्रद्धा एवं विवेक का पथ अपनाया। करे । वे अपने एक पूर्व भव में पुरुखा नालक भीलों
वे निष्ठापूर्वक प्रात्मोन्नति के प्रयास में लगे रहे । के राजा थे। वे पशुओं का ही नहीं मनुष्यों का
की पर्याय को छोड़कर देव बने, मानव बने । भी शिकार करते थे। पर एक मुनिराज की प्रेरणा
साधना का मार्ग अपनाते अपनाते वे महावीर के से जिनको वे मारना चाहते थे, उन्होंने मद्य, मांस,
भव को प्राप्त हये। महावीर के भव मे भी उन्होंने एवं मधु तथा हिंसक कार्यों का त्याग किया। शांत
कठोर साधना की । अत्म कल्याण के लिये उन्होंने परिणामों से प्राण त्याग कर प्रथम स्वर्ग में देव
कठोर साधना की । आत्म कल्याण के लिये उन्होंने हुए। वहाँ से निकलकर भगवान आदिनाथ के
राजसी सुखों को त्यागा, इन्द्रिय सुखों से मुख मोड़ा पौत्र एवं भरत चक्रवर्ती के पुत्र मरीचि हुये । भग
तथा बारह वर्षों तक शांति तथा सुख की खोज वान आदिनाथ का अंधानुकरण कर उन्होंने मुनि
में लगे रहे। अनेक प्रकार के कष्ट ऊपर आये,
नर दीक्षा ली। पर अज्ञान के कारण उस पद का
उनका शांतिपूर्वक सामना किया। उनकी साधना निर्वाह करना तो दूर, अधंकार के कारण उन्होंने
सफल हुई । उन्होंने आत्मा के विवादों का समूल मिथ्या मतौं का प्रवचन किया। सद् धर्म के विरूद्ध
नाश किया तथा सच्चे सुख एवं शान्ति की उन्होंने विद्रोह का नेतृत्व किया। उनके प्रवर्तित
प्राप्ति की। मिथ्यामत आज भी विश्व में प्रचलित हैं । मरीचि का उनका यह भव हमें यह प्रदर्शित करता है कि भगवान महावीर का जीवन हमारे लिये एक किस प्रकार घोर मिथ्यात्वीं भी आगे चलकर अपने जाता जागता उदाहरण है कि एक पतित प्रारपी पुरुषार्थ से अपना कल्याण कर दूसरों के लिये भी आत्म विकास के पथ पर बढ़ता हुआ चरमोआदर्श बन सकता है । मरीचि के भव के पश्चात् त्कृष्ट पद पर पहुंच सकता है। उनका चरित उन्होंने असंख्यात वर्षों तक देव, नारकी, पशु एवं उसका प्रत्यक्ष प्रमाण है कि प्राणी अपने उत्थान
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