Book Title: Lekhendrashekharvijayji Abhinandan Granth
Author(s): Pushpashreeji, Tarunprabhashree
Publisher: Yatindrasuri Sahitya Prakashan Mandir Aalirajpur
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प. पूज्य सरल स्वभावी, शासन प्रभावक मुनिराज श्री लेवेन्द्रशेखरविजयजी म.सा. को इस महाराष्ट्र प्रदेश में "कॉकण केशरी" पद से विभुषित किया जा रहा है उसके
लिए हमें अपार खुशी है। पद को ग्रहण करने के बाद समाज में दहेज प्रथा कुरितियाँ आदि जो फैली हुई है उन्हे दूर कर मध्यम वर्गीय लोगों को समाज में उचित स्थान दिलावे। दिन प्रतिदिन धार्मिक
आयोजन शासन की ज्योति को सदा प्रज्ज्वलित सखें। इन्ही शुभ कामनाओं के साथ हमारी ओर से बधाई-रुप पुष्प स्वीकार करें।
जुगराज जैन जालोर (राज.)
विशेष समाचार जानकर खुशी हुई कि पूज्य मुनिराज श्री लेवेन्द्रशेरवरविजयजी म.सा. को गुरु सप्तमी के पावन अवसर पर " कॉकण केशरी' पद से अलंकृत किया जा रहा है।
आप श्री ने महाराष्ट्र यात्रा दौरान जो गुरु गच्छ की महिमा फैलायी है वह अवर्णनीय है। वर्तमान् गच्छाधिपति पूज्य आचार्य देवेश श्रीमद्विजव हेमेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. के साम्राज्य में धर्म प्रभावना एवं गुरु गच्छ की जाहोजलाली में चहुंमुखी विकास कर उन्नति के पथ पर अवासर हो इसी आत्मीय अपेक्षा के साथ।
शांतिलालजी बवतावरमलजी मुथा
आहोर (राज.)
हमें यह जानकर अपार हर्ष हुआ कि पूज्य मुनिराज श्री लेवेन्द्रशेखरविजयजी म.सा. को " कोंकण केशरी' पद से विभुषित किया जा रहा है। पूज्य श्री का यह सम्मान वास्तव में अभिनंदनीय
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पूज्य मुनिदव ने विगत दो वर्षों से समवा महाराष्ट्र प्रदेश में विविध आयोजनों की पत्रिकाएँ धर्मप्रभावना का साक्षात प्रतिबिम्ब है। पूज्य श्री बहुत ही कम समय में अनेक उल्लेखनीय कार्य सम्पन्न कर सौधर्म बृहत् तपोगच्छीय परम्परा में कीर्तिमान स्थापित किया है।
राजस्थान में जालोर के निकट सर्वप्रथम गुरु स्मृति में श्री मयर शंवेश्वर पार्श्वनाथ जैन तीर्थ गुरु लक्ष्मणघाम एवं अतिशव महिमावन्त तीर्थ श्री शंश्वेश्वर में श्री पार्श्वपद्मावती शक्ति पीठ गुरु लक्ष्मण ध्यान केन्द्र की स्थापना कर गुरु श्रदा का ज्वलंत उदाहरण प्रस्तुत किया है। प्रतिभा सम्पन्न मुनिद्वय सुविशुद्ध चारित्र की आRथना करते हुए प्रगति के पथ पर अग्रसर होते हुए, समाज की उन्नति में इसी प्रकार योगदान देकर तेजस्वी कार्य शक्ति से गुरु गच्छ की महिमा को गौरवान्वित करें। यही अन्तर की अभिलाषा।
मुथा येवश्चन्द हिम्मतमलजी
आहोर (राज.)
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२० संसार में जो कोई मानव ज्ञान-दृष्टि से देखे कर्तव्य के मार्ग पर, अचेतन स्थिति और अपने स्वार्थ की चिंता करके दौडता
रहता है, वह थक हो जाता है, थक कर गिर जाता है और गिरकर समाप्त भी हो जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only
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