Book Title: Lekhendrashekharvijayji Abhinandan Granth
Author(s): Pushpashreeji, Tarunprabhashree
Publisher: Yatindrasuri Sahitya Prakashan Mandir Aalirajpur
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कोंकण में धर्म प्रभावना
कोंकण प्रदेश में जैन श्रमण संघो ने नहीं के बराबर विचरण किया है। सर्व प्रथम बार इन्ही मुनिद्वय ने पुरे कोंकण प्रदेश का विचरण किया और धर्म जागृती का शंखनाद किया। कोंकण प्रदेश के प्रसिद्ध नगर पेण में माघ सुदी ९ दिनांक ४ फरवरी सन् १९९० को श्री पार्श्व पद्मावती महापूजन का भव्यातिभव्य आयोजन किया गया। इस क्षेत्र में इस प्रकार की यह महापूजन सर्व प्रथम बार हो रही थी। - इस महापूजन का आयोजन शा. मोहनलालजी छोगमलजी सराफ की ओर से किया गया था।
और स्वामी वात्सल्य भी रखा गया था। इस महापजन को देखकर और प्रभावित होकर फतापुरा नि. शा फुटरमल सेनाजी परिवार ने भी पूजन पढ़ाने की इच्छा व्यक्त की। इनकी इच्छा को मान देकर मुनिद्रय ने २७ फरवरी १९९० फागुन वदी १० का मुहुर्त प्रदान किया। - पेण से विहार कर मुनिद्वय साध्वी मण्डल सहित इन्दापुर की ओर विहार किया। महाराष्ट्र प्रदेश में सर्वप्रथम बार इसी इन्दापुर (तलाशेत) गांव में गुरु सप्तमी का भव्य आयोजन हो गया था। अत्यन्त उल्लासमय वातावरण में महापूजन का कार्यक्रम सानन्द सम्पन्न हुआ। इस कार्यक्रम से पूरे कोंकण प्रदेश में धर्म की भावना तीव्र गति से फैली फिर तो कोंकण प्रदेश में अनेकानेक कार्यक्रम मुनिद्वय की शुभ निश्रा में आयोजित किये गये। . __ इसी के अन्तर्गत रोहा श्री संघ की तरफ से रोहा में भी श्री पार्श्व पद्मावती महापूजन का भव्यातिभव्य आयोजन किया गया। दिनांक २७ फरवरी १९९० को रोहा में महापूजन का कार्यक्रम अति आनन्द के वातावरण में सम्पन्न हुआ। यहाँ पर कार्यक्रम सम्पन्न करके मुनिराज द्वयमय साध्वी मंडल के विहार करके अलीबाग पधारे।
अलीबाग महाराष्ट्र प्रदेश का सुन्दर सुरम्य और प्राकृतिक छटा से युक्त आकर्षक नगर है। प्रकृति की गोद में बसे इस सुन्दर नगर के वातावरण का आनन्द लेने के लिए दुरदराज गांवो नगरो से अनेक लोग यहाँ आते रहते है।
समुद्र तट पर स्थित इस नगर में १२५ वर्ष प्राचिन श्री शांतिनाथ भगवान का जिन मंदिर । विद्यमान है, अति प्राचिन होने से मंदिर जिर्ण हो चुका है। मुनिराजश्री ने इस मंदिर की यह हालत देखकर इसका जिर्णोद्धार कराने की आवश्यकता से श्री संघ को अवगत कराया। श्री संघ ने उचित निर्णय लिया और फागुन सुदी ६ संवत २०४६ दिनांक २ मार्च १९९० को श्री शांतिनाथ जिन मंदिर का शिलान्यास समारोह सम्पन्न हुआ। इसी समारोह के अन्तर्गत दोपहर में श्री पार्श्व पद्मावती महापुजन का आयोजन रखा गया व शाम को स्वामी वात्सल्य हुआ।
अलिबाग के कार्यक्रम सानन्द सम्पन्न कर मुनिराजद्वय साध्वी मंडल साहित नागोठाणा पधारे। पूर्व में नागोठाणा जैन श्री संघ ने पंचान्हिका महोत्सव का निवेदन मुनिश्री से किया था उनका निवेदन आज साकार रुप ले रहा है। फाल्गुन सुदी ७ दिनांक ३ मार्च १९९० को नागोठाणा में मंगल प्रवेश हुआ। पंचान्हिका महोत्सव शुक्रवार को ही शुरु हो गया था। रविवार दिनांक ४ मार्च १९९० को अचिन्त्य महिमावन्त श्री पार्श्व पद्मावती महापूजन पढ़ाई गई। सोमवार दिनांक ५ मार्च को भव्य रथयात्रा का आयोजन रखा गया।
मंगलवार दिनांक ६ मार्च १९९० को शास्त्रोक्तानुसार श्री बृहत शांतिस्नात्र महापूजन पढ़ाई गई। अनेक जैन जैनेतर लोगो ने देखा एवं खुब खुब सराहना की। यहाँ प्रति दिन प्रवचन
सन्यास समारताव शाम को स्वामंडल साहित
मानव जब अत्यंत प्रसन्न होता है तब उसकी अंतरात्मा भी गाती रहती है।
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