Book Title: Lekhendrashekharvijayji Abhinandan Granth
Author(s): Pushpashreeji, Tarunprabhashree
Publisher: Yatindrasuri Sahitya Prakashan Mandir Aalirajpur

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Page 314
________________ मंत्रीके हाथ में दे दी। दुसरे दिन राजा जब भोजन के उठेंगे तब ये चिट्ठी खोलकर पढना ऐसा पंडित ने कहा। राजा रोज की तरह भोजन करने बैठा उस वख्त राज्य में कुछ गडबड हो गयी और राजाका जाना जरूरी हो गया। राजा भूखा ही उठा सब ठीक ठाक शांति करके सांझ को ४-५ बजे वापस आया। भूख तो जोरसे लगी थी। रसोई घरमें खीचडी के सीवा कुछ था ही नही। खीचडी का भोजन करनेके बाद उसे चिठ्ठीकी याद आ गई। उसने मंत्री से चिठ्ठीमें लिखा मजकूर पढने कहा। चिठ्ठीमें लिखा था "राजा को शाम को खीचडी खाने मिलेगी" इतनी शक्ति ज्योतिष में है। ज्योतिष शास्त्रके सिध्धांत, संहिता और होरा तीन स्कंध है। प्रशास्त्र के उपर भी निदान कर सकते है षटपंचालीका, प्रश्न भैरव आदी ग्रंथ प्रश्रशाख के उपयुक्त है। ज्योतिष वो नयन है और मुहुर्त दिया है। नयन और दिया मिल जाय तो उज्जवल प्रकाश के मार्ग पर आगे बढना बुध्धि का लक्षण है। दनिया के खगोलशास्त्रज्ञोने ज्योतिष दर्शन का दान दिया। क्रांतिवत पर कोई एक स्थान पर कोई एक ग्रह खूप बलवान है। दुनियामें अलग अलग राष्ट्रों पर अलग अलग सत्ताधिकारोका आधिपत्य होता है। राजकीय व्यक्ति भी अपने ही वर्तुलमें महान कहलाता है। उसी तरह ग्रहोंकी स्थिति का है। ग्रहोंकी असर किस तरह होती है ये जानने का प्रयास ज्योतिष शास्त्रने किया है। संसारमें मनुष्यको प्रारब्ध कर्मोको भोगे बीना छुटका नही, वर्तमानका पुरूषार्थ भविष्यका प्रारब्ध है। अवकाशमें रहनेवाले ग्रह सुख या दु:ख देते नही। सुख दुःख हमारी वृत्ति हमारी चेतना उपजाति है। हमारी चित्त वृत्ति ही एक जन्मकुंडली मानी जाती है। हमारी चित्तवृत्तिनुसार कुंडलीमें वो जो स्थानमें ग्रह पडते है। वृत्तिको अंकुशमें ले लो ग्रह अपने आप वशमें आ जाते है। संसारमें सुख-शांति प्राप्त करनेके लिये वृत्ति उपर कंट्रोल करना सीखो एक श्लोक है। श्रेयांसि बहु विध्वानि, भवन्ति महतामपि।। अश्रेयसि प्रवृत्तानां क्वापि यान्ति विनायकाः ।। महापुरूषोके कार्यमें भी विघ्न आते है। मंगल कार्यों में भी विघ्न आते है। इस हेतु से कोई भी कार्य शुभ मुहुर्त पर करना जरूरी है। उसे प्रतिपादन करनेवाला ज्योतिष शास्त्र है। ज्योतिष ज्योति रूप है। मनुष्यके भाग्य का दर्शन कराता है। उसीका नाम ज्योतिष है। ज्योतिष विद्या इतनी विशाल है। और बहुत विस्तृत है। इसे समजने के लिये इसका ज्ञान प्राप्त करने के लिये सदगुरूकी उपासना और गुरुगम की आवश्यकता है। ज्योतिष के ज्ञानका अंत नही। नये डोकी खोज होती है नये तर्क निर्माण होते है। नया ज्ञान प्राप्त होता है। ज्योतिष विषय इतना गहन है कि हर एक कोई पा नहीं सकता। सब ज्ञान का भंडार है। आजकल मेडीकल एस्ट्रोलोजी भी बहुत प्रचलित है। डॉक्टर्स जन्मकुंडली देखकर रोग का निदान करते है और उस रोग अनुसार उसकी ट्रीटमेंट चालू होती है। इस विषयमें जितना लिखा जाय उतना कम है। आखिर प्रारब्ध अटल है। कर्मणे वाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन फलकी आशा किया बीना कर्म कीये जा। जय जिनेन्द्र ज्योतिष पंडित करूणा जो वस्तु उत्तमोत्तम हो उसे ही जिनेन्द्र पूजा में रखना चाहिए। ३६३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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