Book Title: Lekhendrashekharvijayji Abhinandan Granth
Author(s): Pushpashreeji, Tarunprabhashree
Publisher: Yatindrasuri Sahitya Prakashan Mandir Aalirajpur
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में आकर उनके कानों में खीले ठोक दिये फिर भी वे अपने ध्यान में लिन रहे। क्रोध करना तो दुर रहा, उन्होने उस वाले के लिये कल्याण कामना की। संगम नामक देव ने तो महावीर को ६ महीने तक भारी कष्ट पहुँचाये। उनपर उसने हाथी छोडे, सांप और बिच्छू से उन्हें बार बार कटवाया, उनकी तपस्या भंग करने के लिये कई अप्सराएं भेजी फिर भी वे तिलमात्र भी विचलित नहीं हुए। उन्होंने अन्ते पश्चाताप की अग्नि में जलते हुए संगत से करुणापूर्ण स्वरों में कहा- "संगम, तुमने मुझे कष्ट पहुंचाकर मेरी आत्मा को तो अधिक उज्ज्वल बना दिया है परन्तु मुझे उन पापों के कारण वेदना हो रही है जो तुमने मुझे कष्ट दे देकर अर्जित कर डाले है। प्रभु तेरा कल्याण करे।" गोशालक स्वयंम महावीर का ही शिष्य था परन्तु अपनी ही हवंवारिता से वह उनका कट्टर विरोधी बन गया। अपनी सिद्धियों के बलपर उसने महावीर को अपने प्रचंड क्रोध की ज्वाला मे भस्म करने का पूरा पूरा प्रयत्न किया फिर भी वे एकदम शान्त रहे। इसी प्रकार भगवान महावीर ने सैकड़ों परिसह सहन कर उन्होंने न केवल अपने विरोधियों के हृदय जीते और समाज में सद्भावना सौजन्यशीलता तथा उदारता की भावनाएं फैलायी अपितु उन्होंने अपनी आत्मा को भी अधिक निरवारा। क्षमा व्यक्ति और समाज दोनों के लिये हितकर
यह सच है कि क्षमा के अमृत से अपराधी का दृष्य बदल जाता है, उसका अहंकार चूर चूर हो जाता है ऊपर ऊपर से दिखायी देने वाली जीत हार में बदल जाती है। वह पश्चाताप की आग मे जलकर अपने पापों का प्रशासन करने लग जाता है और एक सुन्दर जीवन का प्रारम्भ करता है। इससे पूरे समाज मे एक नयी जागृति एक नयी प्रेरणा जन्म लेती है, जिससे पूरा समाज लाभन्वित होता है। महात्मा गांधी ने अपनी क्षमा से अंग्रेजो के हृदय बदल डाले। उन्हें अन्तमें गांधीजी के सामने झुकना पड़ा और भारत को आजादी देनी पडी। सचमुच भारत की आजादी क्षमा की एक अभूतपूर्व विजय है। पर क्षमा से केवल समाज में सहिष्णुता का प्रसार होता है ऐसा नहीं है क्षमा से क्षमा प्रदान करने वाले का हृदय भी निर्मल होता है उसकी आत्मा भी विकास करती है, उसके विचारों में उदारता और उसके आचरण में सौम्यता आती है। इस प्रकार क्षमा निर्मल जल व्यक्ति और समाज दोनों के लिये कल्याणकारी होता है। यह हमारे आन्तरिक और बाहरी दोनों विश्वों को सुमधुकर और प्रसादपूर्ण बना देती है। इसीलिये तो पंडित जवाहरलाल नेहरु ने कहा है "बिना क्षमा का जीवन रेगिस्तान
क्षमा मानवता का श्रृंगार है
क्षमा मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ आभूषण है। यह मानवता की अमूल्य निधि है। इसीलिये समस्त धर्मो ने इसे अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान दिया है। श्रीकृष्ण ने तो क्षमा को परमेश्वर का रुप ही कहा है। उन्होंने जरा नामके उस पारधी को भी क्षमा कर दिया जिसके बाण से उनके शरीर का अन्त हो गया था। हजरत महम्मद ने कहा है-जो गुस्सा पी जाते है और लोगों को माफ करते है उन्हें अल्लाह प्यार करता है। उन्होंने उस स्त्री को माफ कर उसके लिये कल्याण कामना की, जो रोजाना प्रात: उनपर कूडा कचरा डाल देती थी। इसा मसीह ने कहा है "तुम अपने भाईयों को क्षमा करो तो ईश्वर तुम्हे भी क्षमा कर देगा। उन्होंने अपने हत्यारों को, जिन्होंने उन्हें क्रूस पर लटकाकर मूत्युदण्ड दिया था यह कह कर क्षमा किया"- हे ईश्वर तू इन्हें माफ कर देना, क्योंकि ये यह नहीं जानते कि ये क्या कर रहे है।" महात्मा बुद्ध
पाप का उदयकाल होता हैं तब पुण्य भी स्तंभित हो जाता है। पुण्य के उदयकाल में पाप स्तंभित हो जाता है।
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