Book Title: Lekhendrashekharvijayji Abhinandan Granth
Author(s): Pushpashreeji, Tarunprabhashree
Publisher: Yatindrasuri Sahitya Prakashan Mandir Aalirajpur

View full book text
Previous | Next

Page 308
________________ , " जैन समाज की एकता : - समस्या एवं समाधान - श्री प्रकाश कावड़िया संगठन में ही शक्ति हैं। यह वाक्य जितना छोटा दिखाई दे रहा है उतना वास्तव में छोटा नही हैं। यह प्रत्येक समाज प्रत्येक कार्य के लिये मूल मंत्र हैं। एकता से बड़े से बड़े कार्यो को आसानी से हल किया जा सकता है हम कहते है कि मैं अकेला हूँ, मैं क्या कर सकता हूँ किंतु यदि इस अकेले के साथ एक व्यक्ति और आ जुडता है ते गणित के अनुसार १ पर १ ग्यारह हो जाते है। उस एक में ग्यारह की शक्ति निहित हो जाती है। इस लिये एकता या संगठन होना और उससे जो कार्य असंभव दिखते है वे भी संभव हो जाते हैं। जैसे फूलों के अलग-अलग रहते वे फूल कहलाते है किंतु यदि उन्हें धागे में पिरो दिया जाता है तो वे एक होकर माला बन जाते है और यही माला किसीके गले की शोभा बन जाती है। एकता शब्द का अर्थ सरल रूप में यही है कि एक और उसके साथ अनेक संगठन में बहुत बड़ी शक्ति निहित हो जाती है । प्रत्येक समाज की उन्नति उस समाज की एकता में निहित होती हैं। जिस समाज में एकता, संगठन नहीं है वह समाज कभी विकास नहीं कर सका है। यह हमारा इतिहास साक्षी हैं। बिना एकता और संगठन के उस समाज का महत्व कहीं दिखाई नहीं दे सकता हैं। वह असंगठित समाज हमेशा हेमदृष्टि से देखा जाता है। सामाजिक कार्यों में अग्नि हेतू समाज के विकास हेतू उसमें संगठन होना आवश्यक है। संगठन के पीछे की भावना यदि स्पष्ट है तो उस कार्य को होने में, लोगों के विचारों को एक करने में संगठन बहुत बड़ी भूमिका निभाता हैं । आदमी किसी चीज को नीचे से उठाना चाहता है तो वह उस कार्य को एक अंगूली के माध्यम से सम्पादित नहीं कर सकता है। उसे उस चीज को उठाने के लिये अपनी अन्य अंगुलियों को मिलाकर उठाना पड़ेगा। अर्थात एक अंगूली कार्य नहीं कर सकती है उसके साथ मिलकर वहीं कार्य अन्य अंगूलीयों कर देती है यहाँ अंगूलियाँ के संगठन एक होने पर कार्य हो गया है। इसी प्रकार समाज की एकता आवश्यक है। कहावत अपने आप स्पष्ट है कि " एक चना भाड को नहीं फौड़ सकता है। " हमारे परिवार में संगठन नही है तो उसकी कोई महत्व नहीं मोहल्ले, समाज और राष्ट्र सभी कि उन्नति के लिये एकता आवश्यक है। समस्या आज जैन समाज की एकता के बारे में हमें गंभीरता से विचार करना चाहिये। जैन समाज की एकता की बात देखे तो हमें पता चलेगा कि हम जिस भगवान महावीर के अनुयायी है उसके जन्मोत्सव मनाने हेतू भी एक नहीं हो पाते हैं। आज जन्मोत्सव संवत्सरी मनाने को मानव जब माया के मोह जाल में उलझ जाता हैं तब वह अपने अस्तित्व को भी भूल जाता है। Jain Education International For Private Personal Use Only ३५७ www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320