Book Title: Lekhendrashekharvijayji Abhinandan Granth
Author(s): Pushpashreeji, Tarunprabhashree
Publisher: Yatindrasuri Sahitya Prakashan Mandir Aalirajpur
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स्वामी ने धर्म-शिक्षा।
इस मन को वश में करने का उपाय ध्यान में भी बताया है। वह कैसे वश में होता है? किस प्रकार उसे एकाग्र किया जाता है? इस विषय में मैं आपको आगे बताऊँगा।
हाँ तो, अब हम ध्यान पद्धति के प्रथम चरण को लें। इस चरण में सर्वप्रथम हमें नवकार मंत्र का सस्वर उच्चारण करना है। मैं समझता हूँ आप सभी को यह महामन्त्र कंठाग्र होगा, आप लोक नित्य इसकी माला भी जपते होंगे।
लेकिन इस ध्यान पद्धति में इसके उच्चारण में कुछ विशेषता लानी होती है। उच्चारण सस्वर तो हो ही साथ सरस भी हो, लययुक्त बोलें, उच्चारण में शीघ्रता न करें, प्रत्येक स्वर, बिन्दु आदि का ध्यान रखें, अनावश्यक विलम्ब भी न करें। _हाँ तो अब मैं नवकार मन्त्र का सस्वर उच्चारण करता हूँ, आप सब भी मेरे स्वर के साथ स्वर मिलाकर बोलें नमो अरिहंताणं नमो सिद्धाणं नमो आयरियाण नमो उवज्झायाणं नमो लाए सव्वसाहूणं
अब हमें वीर वन्दन करना है।
आप सबको ज्ञात ही है कि भगवान महावीर वर्तमान, काल की चौबीसी के अन्तिम तीर्थंकर हैं। उन्हीं भगवान महावीर का शासन चल रहा है।
अब मेरे साथ भगवान महावीर का वन्दन श्लोक बोलिए। यह श्लोक संस्कृत भाषा में है, उच्चारण में थोड़ी सावधानी अपेक्षित है। वीर: सर्वसुरासुरेन्द्रमहिता, वीरं बुधा संश्रिता; वीरेणाभिहत: स्वकर्मनिचयो, वीराय: नित्यं नमः। वीरातू तीथीमेदं प्रवृत्तमतुलं, वीरस्य घोरं तपो:, वीरे श्रीधृतिकीर्तिकांति निचयो हे वीर! भद्रं दिश:।
तीर्थकर भगवान की अनुपस्थिति में हमारे सबसे बड़े उपकारी हैं-गुरूदेव! गुरू भगवान के बताए हुए मार्ग पर स्वयं चलते है और हम सब को वह मार्ग बताकर चलने की प्रेरणा देते हैं। हमें सत्य दृष्टि देते हैं, सन्मार्ग बताते हैं और आचरण-शुद्धि की प्रेरणा देते हैं। वे सम्यक्-ज्ञान-दर्शन-चरित्र में सहायक बनते है।
गुरू का महत्व समझने के बाद अब हम गुरू वन्दन करें। तिक्खुत्तो आयाहिणं पयहिणं करेमि, वंदामि-नमंसामि, सक्कारेमि सम्माणेमि, कल्लाणं मंगलं, देवयं, चेइयं, पज्जुवासामि, मत्थएण वंदामि।
जिस हाथ से किया है, जिस हृदय से किया है, उसी हाथ और हृदय को भुगतना भी पड़ता हैं।
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