Book Title: Lekhendrashekharvijayji Abhinandan Granth
Author(s): Pushpashreeji, Tarunprabhashree
Publisher: Yatindrasuri Sahitya Prakashan Mandir Aalirajpur

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Page 278
________________ का भौंडा प्रयास हो रहा है कि हमारा रहन-सहन स्टेंडर्ड का है, हम अधिक सभ्य है। वस्तुत: वस्त्रों, टेबलों, कुर्सियों और अधकचरी विदेशी भाषा से सभ्यता एवं संस्कृति नहीं आति है। सभ्यता और संस्कृति का विकास जीवन के आचार एवं व्यवहार में होता है। हमारा समाज संक्राति काल में है। एक ओर पुरानी रुदयों के बंधन हैं,तो दूसरी ओर उस्तुकता के स्थान पर उच्छखलता है। कहीं मध्यमवर्गीय समाज का बाप अपनी ब्याह योग्य कन्या के लिए दहेज की चिंता में घुल रहा है तो कहीं एक-एक शादी में लाखों रुपये सजावट एवं आतिशबाजी में ही फूंके जा रहे हैं। कहीं नारियां केवल भोग्या, दीनहीन अज्ञान के अंधेरे में घुट रहीं हैं और कुछ महिलाएं फैशन की तितली बनकर क्लबों एवं होटलो में जाकर अपना धर्म, अपनी संस्कृति एवं खानपान को ही बिगाड रही है। ऐसी स्थिति में हमारी विनम्र राय में समाज को नारी जागरण का सही दिशा में प्रयत्न करना चाहिए। शिक्षा का प्रचार-प्रसार बढे किन्तु उसके दुष्परिणामों से बचने की सावधानी रखी जाय। पुरानी रुढ़ियों के बंधन तोड़े जायें लेकिन नई प्रथाएं, नये आडम्बर और प्रदर्शन नहीं पनपने पायें। मृत्यु भोज समाप्त हो चले हैं और एक रुदि टूटि है किन्तु "बर्थडे" पार्टियो का जोरदार प्रचलन चल पड़ा है। विवाह में गांव की बिरादरी का भोज बंद हुआ है लेकिन फाईव स्टार होटलों में खड़े-खड़े भोज की प्रथाएं चल निकली हैं। अत: हमें पुराना छोड़ने और नया ग्रहण करने में बहुत सावधानी एवं विवेक रखना होगा। देखा-देखी कुछ भी करना उचित नहीं है। भारतीय नारी समाज एक महान परम्परा, महान संस्कृति की धरोहर का दायित्व लिए हुए है। नारियां ही अपने घर को सुसंस्कारी बनाती है, बालकों में संस्कार भरती हैं अत: स्वयं उनका जीवन आदर्श, संस्कारमय होना जरुरी है। हमें हमारे तीर्थंकरों का अनंत उपकार मानना चाहिए और उनके बताये मार्ग पर सदा चलने का प्रयत्न करना चाहिए। भगवान श्री महावीर नारी जाति की ही देन हैं, और विश्व के सभी महापुरुष, विभूतियां नारी जाति की कोख से ही जन्मी हैं अत: मातृशक्ति की महिमा का पार नहीं है। नारी को अपनी महिमा और अपने आदर्श बनाये रखने के लिए भोग विलास के प्रलोभनों को त्यागना चाहिए और दूसरी ओर अज्ञान के कारण अंधविश्वासों एवं रुढ़ियों के बंधनो से भी मुक्त होना चाहिए। भारतीय महिला वर्ग जागरुक है और अधिक सचेष्ट बनेगा और उसका भविष्य उज्जवल है, ऐसा मेरा विश्वास है। जिसे कोई चिंता नही होती उसकी निन्द्रा से गाढी दोस्ती होती है। ३२७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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