Book Title: Lekhendrashekharvijayji Abhinandan Granth
Author(s): Pushpashreeji, Tarunprabhashree
Publisher: Yatindrasuri Sahitya Prakashan Mandir Aalirajpur
View full book text
________________
राजनैतिक आदि क्षेत्रों में नारी पुरुष से हीन समझी जाती थी।
भगवान श्री महावीर ने जातिवाद के साथ-साथ लिंगवाद पर भी कडा प्रहार करते हुए "भावे वंध, भावे मोक्ष" की घोषणा की। पुरुषों के समान ही पूजा आराधना का अधिकार नारियों को दिया, श्रावक के समान ही श्राविकाएं भी "बारह व्रत" पालन कर उपासिका पालन कर उपासिका बन सकती है, ऐसा निर्देश किया। स्वयं तीर्थकर महावीर ने अपने धर्म संघ में चंदना जैसी दासी के रुप में बिकी हुई नारी को दीक्षित किया एवं छत्तीस हजार साध्वियों का प्रमुखा पद दिया। महावीर के संघ में साधुओं की अपेक्षा साध्वियां तथा श्रावकों की अपेक्षा श्राविकाओं की संख्या अधिक थी।
नारी और पुरुष का साधना के क्षेत्र में भेद नहीं करने वाले क्रांति दूत महावीर ने महिला समाज को भोग, विलास, फैशन से मुक्त बनाकर संयम, सादगी, सेवा का मार्ग बताया। एक आदर्श माता के रुप में, पतिव्रता पत्नी के रुप में नारी ही पुरुष को संस्कारी शीलवान एवं सुशील बना सकती है। महावीर की जननी भी तो माता त्रिशला नारी ही थी और इसी प्रकार सृष्टि के सभी महापुरुषों को जन्म देने वाली, लालन-पालन करने वाली नारी जाति के प्रति उस युग में होने वाले भेद भाव, अत्याचार आदि के खिलाफ भगवान महावीर ने सबल स्वर में विरोध ही नहीं किया बल्कि व्यवहारिक क्षेत्र में नारी को सुप्रतिष्ठित भी किया। जो नारी केवल भोग और वासना का साधन थी उसे पूज्या, आदरणीया बनाकर दिखाया।
भगवान महावीर के समकालीन तथागत बुद्ध ने भी अपने धर्म संघ में नारी को दिक्षित तो किया परन्तु प्रारम्भ में वे हिचकिचाये किन्तु महावीर ने क्षणभर की भी दुविधा न रखते हुए नारी जाति को सम्मानीय, गौरवशाली एवं आदरणीय मानकर अपने संघ में दीक्षित किया।
आधुनिक युग में नारी जागरण, नारी स्वतंत्रता की जो मांग उठ रही हैं और नारी पुरुष के बराबर अपने कार्यकौशल का प्रदर्शन कर रही है उसमें यदि महावीर की शिक्षा संयम, सादगी, सेवा आदि नारियों समावेश कर सके तो नारी जागरण सार्थक होगा। तीर्थंकर महावीर का घोष था। "उट्ठिए णो पमायए" उठो प्रमाद मत करो।
जैन समाज में नारियों की आधुनिक युग में क्या स्थिति हैं इस पर विचार करें। जो कम पढ़े-लिखे व्यापारी हैं उनकी बहु-बेटियां भी थोड़ी सी शिक्षा पाती हैं। दूसरा वर्ग वह है जो सुशिक्षित है और सरकारी नौकरियों अथवा बड़े पदों पर या सी.ए. आदि क्षेत्रों में हैं इन सुशिक्षित परिवारों में बहुएं भी पढ़ी लिखी आती हैं, और बेटियों को भी शिक्षा दिलाई जाती है। जहां शिक्षा कम है वहां अज्ञान का अंधकार होने से रुढ़ियों का बोलबाला है, जागृति का अभाव है और उनकी दुनिया घर की दीवारों तक अथवा आभूषण एवं कपडे बर्तनों की दुकान तक ही सीमित हैं। दूसरी ओर जहां शिक्षा है वहां अपवाद छोडकर लगभग फैशन, आडम्बर अधिक बढ़ा है। क्लब, होटलों, सिनेमाओं तक उन्होंने अपनी परिधि बढाई हैं किन्तु घर का लगाव कम होने से घर की गरिमा घटी है। शिक्षित महिलाओं के रहन-सहन, वस्त्रों आदि में आभिजात्यपन आया है और उसने उन्हें सभ्य तो बनाया हैं किन्तु संस्कार कम हुए हैं। घरों में भारतीय संस्कृति का प्रभाव घट रहा है। मातृभाषा और पुराने रीति-रिवाज के प्रति विरक्ति बढी हैं और पश्चिमी सभ्यता एवं अंग्रेजी भाषा, रहन-सहन को प्रमुखता देकर यह सिद्ध करने
३२६
जिस हाथ से किया है, जिस हृदय से किया है, उसी हाथ और हृदय को भुगतना भी पड़ता है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org