Book Title: Lekhendrashekharvijayji Abhinandan Granth
Author(s): Pushpashreeji, Tarunprabhashree
Publisher: Yatindrasuri Sahitya Prakashan Mandir Aalirajpur
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ने भी अपने शिष्यों को क्षमा का उपदेश दिया। उन्होंने उन सभी को नया जीवन दिया, जो उन्हे कष्ट पहुँचाते थे। उनका अपमान करते थे। इस प्रकार हम देखते है कि विश्व के सभी महापुरुषों ने क्षमा का महत्व बताया है और सभी धर्मो ने क्षमा को धर्म का द्वार बताया है। बिना क्षमा धर्म में प्रवेश नहीं किया जा सकता। जहाँ क्षमा वहाँ शान्ति
आज विश्व विनाश के कगार पर खड़ा है युद्ध के भयानक बादल मंडरा रहे है। प्रत्येक व्यक्ति, प्रत्येक समाज, प्रत्येक देश बेचैन है। दूसरे महायुद्ध का विकराल रुप मानव देख चुका है। उसे यह भली भांति ज्ञात है कि यदि तीसरा महायुद्ध छिड़ गया तो उसकी विनाशकारी लपटों से कोई भी प्राणी जिन्दा न बचेगा। यहाँ तक कि वनस्पती भी नहीं। सब कुछ मिट जाएगा, शुन्य हो यु. एन. ओ. इस निष्कर्ष पर पहुँची है कि युद्ध बीज रुप में पहले मनुष्य के मन में जन्म लेता है फिर उसी का स्फोट महायुद्ध के रुपमें होता है। प्रश्न है कि मनुष्य के मन में युद्ध के बीज जन्म कैसे लेते है? हमारे छोटे छोटे तनाव, द्वेष के छोटे छोटे कण, अहंकार के क्रोध के छोटे छोटे स्फलिंग ही हमारे मन को दूषित बना देते है और यह दूषित मन युद्ध के किटाणूओं को जन्म देता है। अत: यह जरुरी है कि हमारे मन की भूमि स्वच्छ रहे, पर तनाव, द्वेष, अहंकार, क्रोध से दूषित न हो इसके लिये क्षमा जल की आवश्यकता है। क्षमाजल बडा शक्ति शाली है वह हमारे मन के सारे दूषण को पलभर में साफ कर सकता है। आग कितनी ही प्रचंड हो पानी से शान्त हो ही जाती है। अंधेरा कितना ही गहरा क्यों न हो सूर्य के सामने नहीं टिक सकता। क्षमा के सामने अहंकार, क्रोध, द्वेष, तनाव सभी भाग खड़े होते है। जहाँ क्षमा है वहाँ शान्ति का अपने आप आगमन होता है। क्षमा ज्ञान का सार है
भगवान महावीर ने कहा है क्षमा रुपी वृक्ष पर ही ज्ञान के फल लगते है। क्षमा के बिना ज्ञान सम्भव नहीं। ज्ञान की उपलब्धि के लिये चाहिये नम्रता, विनयशीलता, सरलता और इन सभी का क्षमा के साथ ही आगमन होता है। अहंकारी को ज्ञान प्राप्त नही हो सकता। अहंकार का भाई है क्रोध/क्रोध और अहंकार मिलकर जीवन को दुषित तो करते ही है पर साथ ही वे ज्ञान के मार्ग को भी अवरुद्ध कर देते है। व्यक्ति ने धार्मिक शास्त्र रट लिये, धर्म पर बडे बडे प्रभाव शाली भाषण दे डाले, बडे बडे ग्रन्थ लिख डाले, फिर भी उसमे यदि क्षमा शीलता नहीं तो वह ज्ञान अर्थहीन है। इसी प्रकार एक साधक ने यदि लम्बे लम्बे उपवास किये, अनेक कठिन व्रत पच्छखाण किये, फिर भी यदि उसने क्षमा नही धारण की तो उसका सारा तप दो कौडी का है ऐसा महावीर ने साफ साफ कहा है। अन्य महापुरुषों ने भी क्षमा को बहुत उँचा स्थान दिया है। अत: ज्ञान के आराधकों के लिये क्षमा धारण करना अनिवार्य है। . क्षमा का आगमन कैसे हो?
अब प्रश्न यह उठता है की, क्षमा का आगमन कैसे हो? क्षमा कोई ऐसी वस्तु नहीं जिसे हम बाजार में खरीद सकते हों। क्षमा लायी नही जा सकती। इसका तो आगमन तब होता है जब हम सृष्टि के प्रत्येक प्राणि को गहराई से प्रेम करते है, उसके अन्तर में हम अपनी ही आत्मा का दर्शन करते है। जब हम अपने पराये की सारी दीवारें गिरा देते है। उँच-नीच, जाति-पाति, पंथ-सम्प्रदाय, देश-विदेश के समस्त भेद भाव समाप्त कर देते है और
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संपूर्ण सुख में रहने वाला मानव जब दुःख के दावानल के बीच फंस जाता है तब वह दुःख का मुकाबला कर नहीं सकता।
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