Book Title: Lekhendrashekharvijayji Abhinandan Granth
Author(s): Pushpashreeji, Tarunprabhashree
Publisher: Yatindrasuri Sahitya Prakashan Mandir Aalirajpur
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में चित्रशुद्धि व आशा ईर्ष्या तथा अहंकार को त्यागने वाला सन्यासी है। आहार के लिये सम्यक चरित्र में भिक्षा आदि ग्रहण करने में जो सीमित सतर्कता का उदाहरण है। उसी द्रष्टि से 'भिक्षुकोपनिषद में आठपास भोजन का विधान है। गीता ६ अ.१७ वां श्लो. में लिखा है - युक्राहार विहारस्य, युक्त चेष्टसय कर्मसु। युक्त स्वप्ना व बोधस्य, योगोभवति दुःस्वहा।। अर्थात दु:खो का नाशकरने वाला योग युक्तिपूर्वक आहार-विहार करना, कर्मों में यथा योग्य चेष्टा तथा यथा योग्यशयन व जागने वाला ही सिद्ध होता है।
जानामि धर्म न च मे प्रवृति, जानाम्य धर्म न च मे निवृति| पंचदशी ६.१७६॥ तृष्णाओं तथा नीच प्रवृतियों में रहना धर्म नहीं। उनकी निवृत्ति ही धर्म है। साधारणत: हमारे कर्म राग द्वेष से उत्पन्न होते है। हमारी ज्ञानेन्द्रिय इन्हीं के अनुसार कार्य कहती है। पंचयम - अहिंसा, सत्य, चोरी न करना, ब्रह्मचर्य और लोभ न करना। पंचनियम-पवित्रता, सन्तोष तय, स्वाध्यय, तथा प्रणिघात। ये भारतीय दर्शन में जैन दर्शन की एक रुपता का द्योतक है।
इस लेख की इति श्री से पूर्व जैन दर्शन का स्यादवाद की प्रशंसा किये बिना नहीं रह सकता। क्योंकि स्यादवाद में उदारता दिखाई देती है। वे अन्यान्य दार्शनिक विचारोंको नगण्य नहीं समझते या किसी दर्शन की हठोक्ति को नहीं मानते कि केवल उसी के विचार सत्य है। ऐसी हठोक्ति में एकान्त वाद का दोष रहता है। इसलिये दृष्टि का साम्य होना आवश्यक है। अनेक मतों के प्रति समादरभाव के कारण अनेकांत वाद तथा स्यादवाद है। अनेकांतवाद के अनुसार वस्तु में अनेक प्रकार के धर्म पाए जाते हैं। स्यादवाद के अनुसार कोई भी विचार निरपेक्ष्य सत्य नहीं होता। एक ही वस्तुके सम्बन्ध में दृष्टि अवस्थी आदि भेदोंके कारण भिन्नभिन्न विचार सत्य हो सकते है।
दर्शन विषय के इस विशीलतम मंथनामृतमें से समय और शक्ति के अनुसार यद किन्चित अंश के रुप में यहां प्रस्तुत करने का यथा संभव प्रयास किया है।
वैद्य मुरलीधर श्रीमाली "साधक" नगरपरिषद भण्डार के पास, राजनेर रोड
वीकानेर (राजस्थान)
- ३३४००१
• अपने आप सम्मान सहिक सन्मार्ग पर जो आता है उसके अंत:करण में आत्मकल्याण, आत्मदर्शन
और आत्मवैभव का प्रकाश प्रस्फुटित हो अद्वितीय उज्ज्वलता प्रदान करता है।
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मन की पखडियां जब एक्यता के सूत्र से पृथक हो जाती हैं तो प्रत्येक मानवीय प्रयत्न सफल नहं हो सकते।
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