Book Title: Lekhendrashekharvijayji Abhinandan Granth
Author(s): Pushpashreeji, Tarunprabhashree
Publisher: Yatindrasuri Sahitya Prakashan Mandir Aalirajpur
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१- दशवैकालिक सूत्र २- उत्तराध्ययन सूत्र ३ - सत्रकृतांग ४ - भगवती आराधना ५ - तत्त्वार्थ सूत्र
- राजवार्तिक ७ - ज्ञानार्णव ८- वारस अणु वेक्खा ९ - जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश, शु. जिनेन्द्र वर्णी, चारो भाग। १० - चिंतन की मनोभूमि, लेखक - उपाध्याय अमरमुनिजी। ११ - जैनदर्शन स्वरूप और विश्लेषण - देवेन्द्र मुनि रामश्री १२ - धर्म, दर्शन, मनन और मूल्योकंन - देवेन्द्र मुनि रामश्री १३ - जैन तात्त्विक परम्परा में मोक्षरूप - स्वरूप - राजीव प्रचंडिया एडवोकेट १४ - कर्म, कर्मबध्ध और कर्म क्षय - राजीव प्रचंडिया, एडवोकेट १५ - दर्शन और चिन्तन - पं. सुखलालजी १६ - जैनदर्शन में मुक्तिः स्वरूप और प्रक्रिया - श्री ज्ञानमुनि जी महाराज (जैन भूषण), श्री पुष्कर मुनि अभिनन्दन ग्रन्थ।
• विश्व की प्रत्येक मानवीय क्रिया के साथ मन-व्यवसाय बधा हुआ है। यह मन ही एक ऐसी वस्तु हैं, जिस पर नियंत्रण रखने से भवसागर पार होने की महाशक्ति प्राप्त होती हैं। और अनंतानं भव भ्रमर वाला भोमिया भी बनता हैं। मानव जब मनोजयी होता हैं तो तब वह स्वच्छ आत्मा-दृष्टि और ज्ञान-दृष्टि उपलब्ध करता हैं।
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कर्म की सत्ता (प्रभाव) किसे नहीं भोगनी पड़ी है।
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