Book Title: Lekhendrashekharvijayji Abhinandan Granth
Author(s): Pushpashreeji, Tarunprabhashree
Publisher: Yatindrasuri Sahitya Prakashan Mandir Aalirajpur
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क्षमा विर शूरविर मनुष्यों को भूषण है अलंकार है उद्दण्ड एवं क्रोधी व्यक्ति का क्रोध भी क्षमा के कारण को समाप्त हो जाता है " क्षमा वीरस्य भूषणम् ग्रन्थकार महर्षियोंने क्षमा वाणी को वीर का भूषण शणगार कहा है, संस्कृत के एक श्लोक में ज्ञानी भगवन्त कह गये है कि
" क्षमाशास्त्र करे यस्य दुर्जनः किं करिष्यति । अतृणे पतितो वहिनः स्वयमेवोप शाम्यति ॥
जिसके कर कमल में क्षमा रूपी शस्त्र है, उसका दुष्ट जन क्या कर सकते है जिस प्रकार सुखे तिनके से रहित स्थान में पड़ी हुई अग्नि अपने आप ही शान्त हो जाती है किसी मर्मज्ञ मनिषीने कहा "क्षमा" यह तो देवी दिव्य गुण है जिसमें यह गुण होता है वही परमात्मा का प्रियपात्र बन सकता है "क्षमा" धारण से मानव की मानवता में अभिवृध्धि होती
है।
"क्षमा" के अभाव में व्यक्ति का सारा आयाम कागज के फूल के समान है। क्षमाधारी शत्रु को भी मित्र बना लेने की कला जानता है उसका व्यक्तित्व बहूत ही स्वच्छ, सुन्दर, निर्मल होता है इतिहास के पृष्ठों पर कितने ही सचोट उदाहरणों का विस्तृत वर्णन हमें देखने को मिलते है कि " क्षमागुण" के कारण अनेक भव्य महान आत्माओंने स्वयं को भवसागर से पार कर लिया और अन्य को भी भवरूपी समुद्र से तिरने का उपाय बता दिया क्षमा धारक कभी हिंसक नहीं हो सकता क्षमा कूलककी छठ्ठी गाथा में लिखा
कोहे वसटे भंते जिवे किं जणइ इय विजाणंतो भगवइ वयणं निलज्ज देसी कोवस्स अवगातं
हे परमात्मा क्रोध के वशिभूत हुआ जीव क्या उत्पन्न करता है? इसके उतर के लिए श्री भगवती सूत्र का वचन हे निर्लज्ज । क्रोध के आवेश में क्यो अवकाश प्रदान कर कटु परिणामी कर्म का बन्धन करता है जिससे आत्म अवोन्नति का मार्ग रूक जाता है और साधना की सफलता में बाधा उत्पन्न होती है।
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मित्रस्याहं चक्षुणा सर्वाणि भूतानि समीक्षे मित्रस्य चक्षुणा सर्वानि भूतानि समिक्षन्ताय
सर्व प्राणी जगत को मैं मित्र की दृष्टि से देखूं मुझे भी सभी जीव मित्रता की दृष्टि से देखें। यह आत्मीय भाव की उन्नत स्थिति है। इस उन्नतस्थिति को प्राप्त करने के लिए साधक को क्षमा की साधना करना अनिवार्य है जिससे व्यक्ति का हृदय उदार विशाल बन जाये। अनुदार व्यक्ति का कभी भी व्यक्तित्व नही निखर सकता व्यक्ति सर्वोपरी नही है उसका व्यक्तित्व सर्वोपरी है पृथ्वी को माता क्यों कहते है ? माता जिस प्रकार पुत्र पुत्रियों के लिए अनेक कष्ट सहन करती है। उनका लालन पालन, पोषण, देख भाल भली प्रकार से करती है उच्चत्तम वात्सल्य भाव रखती है। स्वयं कष्ट सहकर भी पुत्र पुत्री की सूरक्षा करती है। इसीसे माँ यह शब्द विश्व का सबसे प्यारा शब्द माना गया। अतः इसी कारण माता पिता कहते है।
माता की भांति 'पृथ्वी' भी कितना सहन करती है चाहे पीटे, कुटे, मलमूत्र करे, पैरों
जिसे कोई चिंता नही होती उसकी निन्द्रा से गाढ़ी दोस्ती होती है।
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