Book Title: Lekhendrashekharvijayji Abhinandan Granth
Author(s): Pushpashreeji, Tarunprabhashree
Publisher: Yatindrasuri Sahitya Prakashan Mandir Aalirajpur

View full book text
Previous | Next

Page 261
________________ और कलाओं में भी संगीत का स्थान सर्वोच्च है।" संगीत मानवता का संचार करता है। यह जीवन का समुचित विकास करता है। जीवन को अनुशासित और नियन्त्रित करता हैं। सम्यता, सांस्कृतिकता विशाल द्रष्टि आत्मबल, सहनशीलता और विनम्रता की सृष्टि संगीत से ही संभव है। संगीत से हृदय की कटुता, छल, प्रपंच कठोरता नष्ट होती है और शिष्टता तथा स्नेह स्थापित होता है। यदि जीवन से संगीत अलग कर दिया जाय तो फिर मनुष्य केवल मशीन बनकर रह जायगा। आज की सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था ने व्यक्ति, व्यक्ति को अलग किया है। सामाजिक उच्चवर्ग और निम्न वर्ग को जन्म दिया बीच खाई को और अधिक गहरा कर और दुश्मन मानते हैं। इसके पीछे दो एकता की जगह विखण्डन की स्थिति निर्मित की हैं। है। इस दोष पूर्ण आर्थिक व्यवस्था ने दोनों वर्गों के दिया है। नतीजन दोनों वर्ग एक दूसरे को प्रतिद्वन्दी महत्वपूर्ण घटकों का पूरा-पूरा हाथ हैं। ये दोनों घटक है राजनीति और धर्म । सारा समाज धर्म और राजनीति पर टिका है पूर्णतया इन्हीं से प्रभावित हैं और संचालित हैं यह निर्विवाद सत्य है कि राजनीति और धर्म कभी व्यक्ति को जोड़ती नहीं, तोड़ती ही है। इन दोनों घटको ने कभी समाज को एकता के सूत्रमें नहीं बांधा, हमेशा विघटित ही किया है। इसका कारण यह है कि समाज के टूटने, जर्जर होने और आपस में टकराने पर ही राजनीति पनपती हैं और धर्म जीवित रहता है। इसी तरह भाषा भी कभी किसी को एक सूत्र में नहीं बांध सकती। जिस भाषा को भी महत्व दिया जायगा वह दूसरों पर लादी गई भाषा ही होगी विवशता वश लोग दूसरी भाषा को स्वीकार करते है लेकिन अन्दर से लोग उसके प्रति समर्पित नहीं होते। इसी कारण बार बार भाषा का झगडा खड़ा हो जाता है क्योंकि कोई भी यह नहीं चाहता कि उस पर दूसरी भाषा का अधिकार हो इस तरह धर्म और राजनीति की तरह ही भाषा भी एक दूसरे को जोड़ने में सहायक नहीं हो सकती । जब भी इन आधारों पर प्रयास किये गये आपसी टकराहट तथ भेद अधिक पैदा हुए हैं। | व्यक्ति व्यक्ति के बीच अलगाव समाप्त कर आत्मीय सम्बन्ध स्थापित करने का काम कला के द्वारा ही संभव है कला में भी संगीत से अधिक संभावना है। मनुष्य संगीत के द्वारा आदि काल से प्रभावित होता आ रहा हैं। संगीत के प्रती आकर्षण मनुष्य का जन्मजात गुण हैं। छोटे बच्चों में संगीत के प्रति बहुत अधिक रूझान होता है। बच्चे के समाने यदि गीत गाया जावे, कोई वाद्य या झुनझुना ही बजाया जाय तो बच्चा खुश हो उठता है। उस धुन के साथ वह किलकारियां भरने लगता है। तालियां बजाने लगता है और हाथ पाँव पटकने लगता है लोरी सुनकर सो जाता है। सोचिये क्या कारण हैं कि बालक इतना मुग्ध हो जा है? क्या केवल ध्वनि के कारण ही उसका ध्यान बह जाता हैं? यदि ऐसा हैं तब तो कुत्ते के भौंकने से भी इतना प्रभाव पड़ना चाहिए ? पर ऐसा नहीं होता। ध्वनी के साथ रंजकता भी तो आवायक है क्योंकि बच्चा तो रंजकता से प्रभावित होता हैं। यही रंजकता संगीत में होती है। मनुष्य हर स्थिति और अवस्था में संगीत का सहारा लेता है। दुःख में भी तो सुख में भी बचपन में वह आनन्द और मस्ती का संगीत पसंद करता है। युवावस्था में श्रृंगार और प्रेम तथा उत्साह वाला संगीत पसंद करता है प्रौढ़ होने पर उसकी रुचि गंभीरता की ओर हो जाती है तो वृद्धाअवस्था में वह आध्यात्मिक संगीत में आत्मिक शांति ढूंढता है। संगीत का ध्वन्यात्मक रुप भाषा के जन्म से पहले का नहीं तो कम से कम उसके साथ ∞ ३१० Jain Education International अभिनय कभी सत्य नही होता किंतु छद्म वेषधारियों को इसका ध्यान कुछ कम ही रहता है। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320