Book Title: Lekhendrashekharvijayji Abhinandan Granth
Author(s): Pushpashreeji, Tarunprabhashree
Publisher: Yatindrasuri Sahitya Prakashan Mandir Aalirajpur
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मैने प्रयोग किया, वह ताकत पैदा हो गई।
बड़ोदा के पास अड़ास गांव के पिनाकिन भाई पटेल काफी शक्तियां रखते हैं। स्वर-विज्ञान, ज्योतिष-विज्ञान, मंत्र-तंत्र, जड़ी-बुटियों की विशिष्ट अवगति के साथ दैवी उपासना में संलग्न है। ८ मई १९९० की रात को हम उनके निवास स्थान पर रहे, लम्बे समय तक चली बातचीत में उन्होंने बताया-विशिष्ट शक्तियों को प्राप्त करना, सरल नहीं होता, बड़ा संयम-विशेषत: आहार पर पूरा नियंत्रण रखना पड़ता है, मैं महीनों तक केवल चपाती-भाजी खाकर रहा हूँ। अभी भी बहुत हल्का एक चपाती भर भोजन करता हैं। इन घटनाओं से पता चलता है कि रस विजय बिना लौकिक-पारलौकिक कोई भी शक्तियां प्राप्त नहीं हो सकती है।
यह ठीक है कि प्रयोक्ता भौतिक आकांक्षा से ग्रसित न हो चूंकि आकांक्षा मूल पूंजी-अक्षय आनन्द से बंचित कर देती है। तथापि बहुत सारी व्याधियां मिटती हैं, सिद्धियां प्राप्त होती है। इस प्रासंगिक फल को नजर-अंदाज भी नहीं किया जा सकता।
युग प्रधान आचार्यश्री तुलसी के शब्दों में-स्वाद के लिए खाना-अज्ञान है। जीवन के लिए आवश्यक और संयम के लिए खाना, साधना है। "हंगर इज द बेस्ट सोस स्वाद के अनुसार गहरी भूख लगने पर परिमित-सात्विक भोजन साधक के लिए उपयुक्त बताया जाता है। समय - समय पर रस-परिहार व निराहार रहना भी स्वीकार्य है। तामसिक व राजसिक भोजन, जिससे वासना, क्रोध, लालच, हिंसा आदि के भाव उग्र होते हैं जागते हैं, हेय है सात्विक भोजन, जिससे नाभि के ऊपर के केन्द्र सक्रिय होते हों, पदम लेश्या के प्रकम्पन्न और शुक्त लेश्या के विचार जागते हों, साधना के क्षेत्र में उपादेय है। साधना में सफल होना है तो स्वाद विजय बहुत आवश्यक है। नीरोगता, स्वस्थ दीर्घायु और ऊर्जस्वल व्यक्तित्व उसका प्रासंगिक फल है।
• आग का छोटे से छोटा तिनका भी भयंकर ज्वाला निर्मित कर सकता है। इसी प्रकार अंतर में ईर्ष्या का तिनका जहाँ पड़ जाता है उसी पल अंतर को नष्ट करने वाली अदृश्य अग्नि भभकने लगती है और यह अद्दश्य आग अन्य का सर्वनाश करने से पूर्व उसी के सत्यानाश का सृजन करती है।
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मानव बनो, मानवता के विकास में हु साधुत्व, देवत्व और सिद्धत्व का सृजन हो सकता है।
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