Book Title: Lekhendrashekharvijayji Abhinandan Granth
Author(s): Pushpashreeji, Tarunprabhashree
Publisher: Yatindrasuri Sahitya Prakashan Mandir Aalirajpur
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गंजापन लाता है, रक्त के लिए हानिकारक व त्वचा रोगकारक बनता है यही कारण है चटपटे मसालेदार पदार्थ या अधिक नमक का प्रयोग न करने की समझदार लोग सलाह देते हैं। मिर्च मसालों से जायकेदार बने गरिष्ठ पदार्थो व तली-भुनी चीजों से अमाशय की कुछ रसग्रन्थियां सूख जाती है, इन्सुलिन जैसा उपयोगी तत्व बनना बन्द हो जाता है व मधुमेह बीमारी का कारण बनता है।
चिकनाई भोजन में आवश्यक तत्व है, जिनका भोजन सुखा होता है, उनका जीवन भी सुखा- नीरस देखा जाता है उनके व्यवहार में स्नेहका स्वोत सूख जाता है किन्तु यह भी सच है अधिक चिकनाई, चर्बी व मोटापा वर्धक बनकर रोग जननी बन जाती है।
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प्रो. लूयंग चेह द्वारा जापान, मलेशिया, सिंगापुर व हांगकांग में किये गए परिक्षणों से मालूम हुआ कि अत्याधिक चीनी खाने से विशेषतः १० से २२ वर्ष की आयु में निगाह कमजोर हो जाती है। उन्होंने बताया चीनी, मछली या चावल लेने से विटामिन (VITAMIN-B-1.) बी-१ तथा (B-2) बी-२ की कमी होती है, जिनसे आंखे कमजोर हो जाती है, अतः अति चीनी
खाना खराब है केलिफोर्निया विश्व विद्यालय के वैज्ञानिकों ने एक खोज के नतीजे में बताया शकर युक्त अधिक मीठा आहार हड्डियों के निर्माण में कैलसियम की क्रिया को बाधा पहुंचाता है। अतः हड्डियां व दांत कमजोर हो सकते हैं हड्डियों दांतों की मजबूती चूने की पर्याप्त मात्रा पर निर्भर करती है। चीनी चूने को चाट जाती है। दूध के केल्सियम को कम कर देती है। स्वयं साफ है और खाने वाले के स्वास्थ्य व सौंदर्य को साफ कर देती हैं प्राकृतिक चिकित्सा में सफेद चीनी को सफेद जहर (White Posion) बताया जाता है। न उसमें विटामिन है, न खनिज तत्व ही, कार्बोहाइड्रेट्स के सिवा कोई पोषक तत्व नहीं है। मात्र स्नायु व्यवस्था को उत्तेजना मिलती है शरीर में इन्सुलिन काफी मात्रा में तैयार नहीं होता बिना इन्सुलिन के चीनी लाभप्रद नहीं होती लन्डन युनिवर्सिटी के प्रोफेसर डॉ. प्लीमनरने चीनी को कैन्सर, प्रदर, मधुमेह जैसे भयंकर रोगों को उत्पन्न करने के लिए उत्तरदायी ठहराया है।
जलते दीप का धुंआं काजल बन कर पोतता है पानी, पशु-पक्षी व आदमियों आग विद्युत ने जहां विकास के द्वार
भोजन शक्ति प्रदायक भी है तो रोग संग्राहक भी आंख को रोशनी देता है और दीवार पर का लिख भी को जीवन प्रदान करता है तो बाढ बनकर विनाश भी खोल दिये है, वहां विनाश के भी प्रयोक्ता पर आधारित है कि वह किस प्रकार उसका प्रयोग करता है शरीर को स्वस्थ व साधनाक्षम बनाये रखने के लिए भोजन करना होता है। कब, कितना, कैसा, क्यों और क्या आदि प्रश्नों के परिपार्श्व मे प्राप्त होने वाला भोजन विवेक स्वास्थ्य एवं साधना की दृष्टि से अत्यन्त अपेक्षित है। चूंकि आध्यात्मिक स्वास्थ्य, साधक का मूल लक्ष्य होता है। आचारंग में बताया गया है महावीर पूर्ण स्वस्थ थे फिर भी अल्प आहार ग्रहण करते थे। भक्त के घर प्रचुर स्वादिष्ट पदार्थ - विविध मिष्ठान्न व व्यंजन थे पर स्वामी रामकृष्ण परहंस अत्यन्त अस्वाद वृत्ति से थोडी मात्रा में खा कर रह गये पार्श्ववर्ती लोग स्वाद ले लेकर खूब खा रहे थे और कह रहे थे, चीजे बहुत स्वादिष्ट हैं, भर पेट खाइये, उत्तर में परमहंस ने कहा- इन्द्रियां दुष्ट घोडे के समान होती हैं, संयम की लगाम को मजबूती से हाथ में थाम
कसौटी पर कसे जाने का भाग्य कुंदन को ही मिलता है, कथिर को नहीं।
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