Book Title: Lekhendrashekharvijayji Abhinandan Granth
Author(s): Pushpashreeji, Tarunprabhashree
Publisher: Yatindrasuri Sahitya Prakashan Mandir Aalirajpur
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व्याधि-मुक्ति, शक्ति-प्राप्ति का उपाय - स्वादविजय
मुनिश्री धर्मचन्द जी "पीयूष" आहार प्राणी की प्रथम अनिवार्यता है। आहार के बिना न कोई प्राण धारी जीवित रह सकता है और न सक्षम ही! शरीर को सक्रिय बनाये रखने के लिए भोजन की अनिवार्यता को कोई भी समझदार नकार नहीं, सकता। जो वस्तु जितनी अनिवार्य होती है, आदमी उसके प्रति उतना ही लापरवाह रहता है, सब जानते हैं, जीवन के लिए पानी और हवा कितने अनिवार्य हैं किन्तु उन दोनों के प्रति लोग उतने ही लापरवाह और गैर जवाबदार नजर आते हैं। वह लापरवाही व्यक्ति को ले डूबती है। आहार के प्रति लापरवाही व स्वाद का आकर्षण, चाहे-अन चाहे आदमी को रोगी बना देता है
यूनान की कहावत है - "तलवार उतने लोगों को नहीं मारती, जितने स्वाद वश अधिक खाकर मरते हैं" रोमन व ग्रीक सभ्यताओं के विकास काल में नियम जैसा था कि स्वास्थ्य व मानसिक शांति चाहनेवाले मनुष्यों को दिन में एक बार भोजन करना चाहिये। सिकन्दर जब भारत आया, तब उसके सैनिक शाम को ५ बजे एक बार सादा भोजन करते फिर भी लम्बे चौड़े तंदुरुस्त व बाण चलाने में प्रवीण थे, ऐसा उल्लेख मिलता है। कन्नड़ भाषा में सूक्त है - "वप्पतु उष्णुव योगियु" - एक बार भोजन करने वाला योगी, होता है। दीर्घ जीवन का रहस्य है-हल्का, सुवाच्य, मिताहार अधिक भोगी रोगों को बुलाते हैं, अतिथ्य करते हैं और अपने घर में बसा लेते हैं।
अंग्रेजी में यौवन के तीन शत्रु हरी, वरी एण्ड करी बताये गये हैं-हरी (HURRY) का मतलब है जल्दबाजी-उतावलापन, वरी (WORRY) चिन्ता, घबराहट, करी (CURRY). अधिक मिर्च मसालेवाला भोजन, ये तीनों जवानी के दुश्मन हैं। भोजन में उतावल कभी नहीं करनी चाहिये। अधिक मिर्च मसालों से जीभ जलती है, फलत: बिना चबाये जल्दी गले के नीचे उतर जाता है तब दांत का काम आंत को करना पड़ता है। कुदरत द्वारा निर्मित तीन रक्षा कवच है, पहला जीभ, जो पथ्य-अपथ्य का विवेक करती है, दूसरा दांत, जो चबाते है, तीसरा गला, जो खाद्य पदार्थ को आमाशय तक पहुंचाता है। न पथ्यापथ्य को विवेक, न चबाना, फलत: सब काम आमाशय को करना पड़ता है। जिसमें आतडियां कमजोर पड़ जाती हैं। पाचन तंत्र धीरे-धीरे बिगड जाता है। भूख खुल कर नहीं लगती।
भोजन के अत्यावश्यक तीन अंग-नमक, चिकनाई, तथा चीनी, इनके कारण अनेक रोग होते हैं। वैसे तो नमक के १४००० (चौदह हजार) उपयोग बताये हैं। उनमें भोजन में उपयोग एक है, जो स्वाद व रुचि उत्पन्न करता है, जितने लवण की शरीर को जरुरत होती है, वह फल साग तरकारी आदि से मिल जाता है। साग में बहुत सारे खनिज लवण होते है। वे ही शरीर में जज्ब (आत्म सात) होते हैं, कृत्रिम लवण शरीर में जज्ब नहीं हो सकता, उसे शरीर से बाहर निकालने के लिए गुर्दो को काफी श्रम करना पड़ता है। नमक का अति उपयोग
विश्व में, तीनों लोकों में यदि कोई महामंत्र है तो वह हैं मन को वश में करना।
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