Book Title: Lekhendrashekharvijayji Abhinandan Granth
Author(s): Pushpashreeji, Tarunprabhashree
Publisher: Yatindrasuri Sahitya Prakashan Mandir Aalirajpur
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हैं कि श्रद्धा के प्रतिफल में भक्त गणों के अनेक महारथ पूर्ण हुए हैं। यह भी एक अद्भूत घटना हैं कि चाकण महाराष्ट्र में श्री खुबीलालजी मदनमलजी मुंडारा वालों की ओर से ९ मई वैशाख शुक्ला पूर्णीमा को श्री पार्श्व पद्मावती महापूजन का आयोजन था । वैशाख पूर्णीमा याने कि ग्रीष्म ऋतु का मौसम । यह महापूजन लाल वस्त्र से बने टेन्ट में हो रहा था। अचानक चाकण नगर में आसमान बादलों से घिर गया। चारों ओर बादलों का घेराव, बिजलीयाँ और आसमान से आती गर्जना ने सबको चमत्कृत कर दिया। देखते ही देखते बादलों ने वर्षा का पानी भर गया। यह तो आप भलिभांति जान सकते है कि वर्षा को रोकने की ताकत कपडे से बने टेन्ट में कितनी होती हैं। १ हजार से भी अधिक जनसंख्या इस पूजा में सम्मिलित थी। संपूर्ण भीड पानी की परवाह किए बिना मंत्र धुनों में मग्न थी। सबसे अधिक चमत्कारिक बात तो यह थी कि इतनी वर्षा में भी एक बूंद पानी भी माँ भगवती पद्मावती देवी के मांडले में नहीं गया, दिये लजते रहे, भावनाओं का दीप भी भक्ता गणों में प्रज्जवलित हो उठा था।
खोपोली में ५० वर्षो के बाद विराट महोत्सव का आयोजन हुआ। कर्जत, अलीबाग आदि में जिनमंदिरो का कार्य अनेक वाद-विवादों के बावजूद होना भी माँ भगवती के आशीर्वाद का ही एक प्रतिक हैं
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पूज्य प्रवर की पावन निश्रा में ६५ महापूजनों के आयोजन हो चुके हैं। जो कि समग्र जैन समाज एक मिशाल हैं। उनकी यह पवित्र भावना हैं कि जैन समाज के हमारे चातक वीतराग देव की प्रति श्रद्धान्वित होकर ही मनोरथ पूर्ण करे। हम अन्य स्थलों पर न भटकते हुए जिन शासन के अनुरागी बनकर अनन्य शक्ति से परिचित हों। पूज्य प्रवर का जीवन तो सार्वभौम हैं। किसी ने कहा है कि सूर्य को ढँकने का प्रयत्न व्यर्थ हैं।
आसमां पर थुंका, खुद अपने मुंह पर आता हैं। चारण की विरूद्धावली या चुगलखोर की निन्दा से मानव का मूल्य नहीं आंका जाता I
सबकी पीडा के साथ व्यथा अपने मन की जो जोड सके मुड सके जहाँ तक समय, उसे निर्दिष्ट दिशा में मोड सके, युगपुरुष वही सारे समाज का विहित धर्मगुरु होता हैं। सबके मन का जो अन्धकार अपने प्रकाश से धोता हैं।
श्री पार्श्व पद्मावती महापूजन से आपने अनेकों व्यक्तियों को नई रोशनी, नई दिशा में प्रदान की हैं। इस महापूजन के अनेक चमत्कारों से में स्वयं प्रभावित हुई हूं। कोंकण प्रदेश और महाराष्ट्र की भूमि पर अनेकों महापूजन हो चुके हैं। जो श्रद्धा, भक्ति और पूज्य प्रवर की प्रभाविकता का परिचायक हैं।
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पल-पल जो जागृत रहे, यह साधु । निद्रा में भी जो जागृत हो, वह साधु ।
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