Book Title: Lekhendrashekharvijayji Abhinandan Granth
Author(s): Pushpashreeji, Tarunprabhashree
Publisher: Yatindrasuri Sahitya Prakashan Mandir Aalirajpur
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होते रहते है।
आज को विज्ञान भी इस तथ्य को स्वीकार कर चुका है, तभी आइन्स्टीन आदि वैज्ञानिकों ने अनेकांत नीति की सराहना की है, इसे भगवान् महावीर की अनुपम देन माना है, और शांतिपूर्ण सह अस्तित्व के लिए इसे बहुत उपयोगी स्वीकार किया है। आइन्स्टीन का Theory of relativity तो स्पष्ट सापेक्षवाद अथवा अनेकांत ही है। यतना-नीति
यतना का अभिप्राय है- सावधानी। नीति के संदर्भ में सावधानी जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आवश्यक है। भगवान ने बताया है कि सोते, जागते, चलते, उठते, बैठते बोलते-पत्येक क्रिया को यतनापूर्वक४ करना चाहिए।
सावधानी पूर्ण व्यवहार से विग्रह की स्थिति नहीं आती, परस्पर मन-मुटाव नहीं होता, किसी प्रकार का संघर्ष नहीं होता। आत्मा की सरक्षा भी होती है। समता-नीति
समता भाव अथवा साम्यभाव भगवान् महावीर या जैन धर्म की विशिष्ट नीति है। आचार और विचार में यह अहिंसा की पराकाष्ठा है। भगवान् महावीर ने आचार-व्यवहार की नीति बताते हुए कहा
अप्पसमे ममनिन छप्पि काए । छह काय के प्राणियों को अपनी आत्मा के समान समझो। छह काय से यहाँ अभिप्राय मनुष्य, पशु, पक्षी, देव छोटे से छोटे कृमि और यहां तक कि जल, बनस्पति, पेड पौधे आदि प्राणिमात्र से है।
जैन धर्म इन सभी में आत्मा मानता है और इसीलिए इनको दु:ख देना, अनीति में परिगणित किया गया है, तथा इन सबके प्रति समत्वभाव रखना जैन नीति की विशेषता है।
क्रूर, कुमार्गगामी, अपकारी व्यक्तियों के प्रति भी समता का भाव रखना चाहिये, यह जैन रीति है। भागवान् पार्श्वनाथ पर उनके साधनाकाल में कमठ ने उपसर्ग किया और धरणेन्द्र ने इस उपसर्ग को दूर किया, किन्तु प्रभु पार्श्वनाथ ने दोनों पर ही सम भाव रखा।
मनोविज्ञान और प्रकृति का नियम है कि क्रिया की प्रतिक्रिया होती है और फिर प्रतिक्रिया की प्रतिक्रिया। इस प्रकार यह क्रिया प्रतिक्रिया का एक चक्र ही चलने लगता है। इसको तोडने का एक ही उपाय है- क्रिया की प्रतिक्रिया होने ही न दी जाय।
केसी एक व्यक्ति ने दूसरे को गाली दी, सताया, उसका अपकार किया या उसके प्रति दुष्टतापूर्ण व्यवहार किया। उसकी इस क्रिया की प्रतिक्रिया स्वरुप वह दूसरा व्यक्ति भी गाली दे अथवा दुष्टतापूर्ण व्यवहार करे तो संघर्ष की, कलह की स्थिति बन जाये और यदि वह समता का भाव रखे, समता नीति का पालन करे तो संघर्ष शान्ति में बदल जायेगा।
समाजव्यवहार, तथा लोक में शान्ति हेतु समता की नीति की उपयोगिता सभी के जीवन में प्रत्यक्ष है, अनुभवगम्य है।
समतानीति का हार्द है- सभी प्राणियों का सुख-दुःख अपने ही सुख-दु:ख के समान समझना। सभी सुख चाहते है, दु:ख कोई भी नहीं चाहता। इसका आशय यह है कि ऐसा कोई भी काम न करना जिससे किसी का दिल दुखे। और यह समतानीति द्वारा ही हो सकता है। ४. दशवैकालिक, ५. उत्तराध्ययन सूत्र
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सद्शांत के बिना मुक्ति नहीं। सद्ज्ञान के बिना अनन्त सुखा की भी उपलब्धि नही।
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