Book Title: Lekhendrashekharvijayji Abhinandan Granth
Author(s): Pushpashreeji, Tarunprabhashree
Publisher: Yatindrasuri Sahitya Prakashan Mandir Aalirajpur
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शासन सेवा के कार्य किये। धीरे धीरे मुनिद्वय और साध्वी समुदाय अपने चातुर्मास गंतव्य स्थान की ओर बढ रहे थे ।
और वह दिन आ गया जब मुनिराज श्री लेखेन्द्रशेखर विजयजी मुनिराज श्री लोकेन्द्र विजयजी और साध्वी मंडल गोरेगांव में चातुर्मास प्रवेश करने वाले है।
आषाढ सुद ९ दिनांक १ जुलाई १९९० को गोरेगांव श्री जैन संघ समस्त आतुरता से मुनि श्री के प्रवेश की प्रतिक्षा कर रहे थे। सामैये स्वागत की सभी तैयारियां पूर्ण थी महिलाएँ मंगल कलश लेकर बधाने के लिये तैयार थी।
और वो..... सामने आते दिख रहे है मुनिराज द्वय व साध्वी मण्डल । एक शोर उठा " आ गये आ गये" आगे पिछे भाग दौड मच गई। बैण्डबाजे वालो ने वाद्ययंत्र बजाना चालू कर दिया। महिलाएं मंगल गीत गाने लगी और लोग मुनि श्री के सामैये स्वागत के लिये आगे बढ गये। जय जयकार के नारे लगाये गये। गहूलियां की गई और सामैया चल समारोह के रूप में विभिन्न मार्गो से होता हुआ राजस्थान भवन आरे रोड, पहुँचा । भावभीने उल्लास पूर्ण वातावरण में राजस्थान भवन में मंगल प्रवेश हुआ। उसके पहले श्री जिन मंदिर में दर्शन वंदन किये गये ।
राजस्थान भवन के विशाल हाल में उपस्थित जन समुदाय को मुनिराज श्री ने मांगलिक सुनाया। और संक्षिप्त प्रवचन देकर आपसी सहयोग देने की अपील की
साध्वी मंडल को त्रिपाठी भवन के उपाश्रय में ठहराया गया।
गोरेगांव में चातुर्मास मंगल प्रवेश के साथ ही शुरु हो गई धार्मिक गतिविधियां ।
प. पू. शांत स्वभावी गच्छाधिपति आचार्य देवेश श्री मद्विजय हेमेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. के आज्ञानुवर्ति श्रवण सूर्य पू. मुनिप्रवर श्री लक्ष्मण विजयजी शीतल म.सा. के सुविनित शिष्य रत्नेश शासन प्रभावक प्रवचनकार मुनिराज श्री लेखेन्द्र शेखर विजयजी म.सा. ज्योतिषरत्न, मृदुभाषी, वात्सल्य महोदधि मुनिराज श्री लोकेन्द्र विजयजी म.सा. एवं साध्वी रत्ना विदुषी साध्वी श्री पुष्पाश्रीजी म.सा. आदि ठाणा ७ की पावनीय शुभ निश्रा में गोरेगांव (प.) बम्बई के राजस्थान भवन में ऐतिहासिक धर्म आराधनाए पर्वाराधनाए अनेक विध महोत्सव एवं महापुजनों के चातुर्मास प्रारंभ होने जा रहा है।
पूज्य मुनिद्वय तथा साध्वीजी श्री पुष्पाश्रीजी म.सा. का जब से गोरेगांव में चातुर्मासिक प्रवेश हुआ। तब से ही गोरेगांव (प.) धार्मिक रंग से आपुरित हो गया। प्रतिदिन प्रवचनों में अध्यात्म की विवेचना से जन समाज में धर्मोल्लास की ओर अभिमुख हुए। सर्व प्रथम अतिशय महिमावन्त श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ भगवान के अठ्ठम तप श्रावण वदी ८-९-९० को विधिवत आराधना के साथ उत्साहमय वातावरण में सम्पन्न हुए।
गोरेगांव में सर्वप्रथम समवसरण तप की सामुहिक आराधना का भी प्रारंभ हुआ उत्कृष्ठ मय इस आराधना में ६० से भी अधिक आराधको ने भाग लिया।
चौदह पूर्व का सार रूप नमस्कार महा मंत्र की नौ दिवसीय आराधना का आयोजन श्री जवाहरलालजी पुखराजजी देशलहरा की ओर से किया गया । अचिन्त्य महिमा वन्त श्री नमस्कार महामंत्र की आराधना श्रावण सुदी ७ दिनांक २९ जुलाई १९९० रविवार से नवान्हिका महोत्सव के रूप में प्रारंभ हुई आराधना के शुभावसर पर श्री पार्श्व पद्मावती महापूजन का विराट आयोजन किया गया। आज समग्र महाराष्ट्र में इस महा पूजन की महिमा अभूतपूर्व है। श्रद्धालुगण सैकडों की संख्या में उपस्थित होकर श्रद्धा सुमन अर्पित करते है। नव दिवसिय महोत्सव सामूहिक
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अंतर में जब अधीरता हो तब आराम भी हराम हो जाता है।
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