Book Title: Lekhendrashekharvijayji Abhinandan Granth
Author(s): Pushpashreeji, Tarunprabhashree
Publisher: Yatindrasuri Sahitya Prakashan Mandir Aalirajpur
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राजस्थान की धन्य धरा पर श्री गुरु लक्ष्मण धाम तीर्थ - एक सिंहावलोकन
लेखक-धनराजजी जैन भारत के भुखण्ड पर राजस्थान प्रदेश की ऐतिहासिकता एवं पुरातात्विक दृष्टि से अपना विशिष्ट महत्व लिए हुए है। यहाँ के गौरवमय इतिहास में अनेक शुरवीरों की वीरता की यशोगाथाएँ छुपी हुई है। जो आज भी जन मानस को गोरवान्वित कर रही है। वहीं दूसरी ओर धार्मिक दृष्टि से व अभूतपूर्व शिल्पकला युक्त जैन मंदिरो की श्रृंखला भी विद्यमान है। जिन्हें देखने पर सहज ही सिर नतमस्तक हो जाता है।
अरावली पहाडियों, हरियाली तथा मरुस्थल की आंशिक तपस के बीच स्थित है। ग्रेनाहट सिटी "जालोर" जालोर एक जिला मुख्यालय है। इसी जालोर के निकट (जालोर अहमदाबाद राजमार्ग पर) भागली प्याऊ नामक स्थान पर वि.सं. २०४१ आषाढ वदि १० रविवार २४ जुन १९८४ में विधिवत श्री मरुधर शंखेश्वर पार्श्वनाथ जैन तीर्थ गुरु लक्ष्मण धाम के नाम से यह सुहावना स्थल नामांकृत किया गया।
परम श्रद्धेय मनिराज श्री लक्ष्मणविजयजी "शीतल' म.सा. ने पार्थिव शरीर त्यागने के पहले सिर्फ १५ मिनीट पूर्व २५ मार्च ८४ को कहा था कि " मेरे जाने के बाद जालोर के निकट मरुघर शंखेश्वर पार्श्वनाथ जैन तीर्थ के नाम से तीर्थ की स्थापना करना।" उनका यह आदेश उनके सुविनित शिष्यरत्न पू. मुनिराज श्री लेखेन्द्रशेखर विजयजी म.सा. एवं मुनि श्री लोकेन्द्र विजयजी म.सा., की गुरुभक्ति स्वरुप यह बृहत् योजना को वे साकार रुप दे रहे है। सौधर्म बृहत तपागच्छ में गुरु स्मृति के रुप में यह प्रथम तीर्थ साकार रुप ले रहा है। इसी पावन भूतल पर पूज्य गुरूदेव की इस्वी सं. ८५-८६ और ८७ में गुरू जयन्ती के भव्य आयोजन किये गये। मुनि द्वय ने इस जंगल को भी मंगल का रुप दे दीया। सबसे महत्त्वपूर्ण बात तो यह है कि इस क्षेत्र में विचरण करने वाले मुनि भगवंतो एवं श्रमणीभगवतों के लिए विशेष सुख-सुविधा हो गई है। क्योंकि जालोर अमदाबाद राजमार्ग होने से शेषकाल में ५०० से ७०० साधु साधवियों का अवागमन रहता है। जिनकी वैयावच्च से यह संस्था लाभान्वित हो रही है।
गुरु लक्ष्मण धाम भागली प्याऊ पर विशाल धर्मशाला का निर्माण कार्य हो गया है। भोजन शाला निरन्तर चालू है। यह एक अनुभव पूर्ण सत्य है कि "श्रेयांसि बहुविध्नानि" जब श्रेय के कार्य या रचनात्मक कार्य किये जाते है। कितने ही प्रकार के विध्न व बाधएँ आती है। परन्तु धीर, वीरपुरुष उन सभी बाधाओं को पार करते है। दोनों पूज्य प्रवर कर्मनिष्ठ है, कर्मयोद्धा है, आत्मनिश्चय के धनी है। आशा और विश्वास है कि यह तीर्थ राजस्थान् कि जैन तीर्थ श्रृंखला में अपना शिघ्र स्वतंत्र अस्तित्व व अलग पहचान कायम करेगा। गुरु श्रद्धा का प्रतिबिम्ब है। इस तीर्थ भूमिके हर पत्थर और कण-कण में स्पष्ट रुप से झलकता है।
नवकार मंत्र यह जीवन का परम् सत्व रुप है। नवकार की आराधना से मानसिक क्लेश नष्ट होते है।
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