Book Title: Lekhendrashekharvijayji Abhinandan Granth
Author(s): Pushpashreeji, Tarunprabhashree
Publisher: Yatindrasuri Sahitya Prakashan Mandir Aalirajpur
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सार और सत्य श्रमण भगवन्त महावीर की धर्म परम्परा में २५ सौ वर्षों से अव्याबाध गति से अविच्छिन रुप से चल रही है। इस धर्म परम्परा की गति में अनेक बाधाएँ आई, समस्याओं का प्रादुर्भाव हुआ, संघर्षों का सीलसीला भी चलता रहा हैं। परन्तु श्रमण भगवन्त महावीर का त्याग मार्ग इतना उत्कृष्ट था जिससे समस्त अवरोध तिनके की भाँति हवा में उड़ते गये। क्यों यह धर्म संस्कति त्याग प्रधान रहा है। आज भी महावीर के श्रमण संघ में अनेक आत्माएँ ज्ञान, ध्यान और उत्कृष्ट तप साधना से अनेक आत्म साधकों को बोधीबीज प्रदान कर रहे हैं। उनकी तप पुत: साधना आज भी हमारी समाज को गोरवान्वित कर रही है। प्रात: स्मर्णिय गुरुदेव श्रीमद्विजयराजेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. के प्रशिष्य रत्न श्रमण सूर्य पूज्य प्रवर मुनिराजश्री लक्ष्मणविजयजी म.सा. के शिष्यरत्न मुनिराजश्री लेखेन्द्रशेखरविजयजी म.सा. भी एक ऐसे ही प्रकाश पूंज है जिन्होंने समस्त कोंकण क्षेत्र में अपनी ज्ञान प्रतिमा से आलोकित किया है। उनकी यह धर्मयात्रा न केवल एतिहासिक है बल्कि आगामी पीढ़ी के लिए दिकदर्शक भी। उन्होंने अनेक रचनात्मक कार्य किये है। जैसे कि कर्जत, अलिबाग आदि जिनमंदिरो का पुन:निर्माण कार्य में आ रहे अवरोधों को आध्यात्मिक शक्ति के मनोबल से दूर किया।
खोपोली नगर में ५० वर्षों के बाद जिनेन्द्र भक्ति स्वरूप अष्टान्हिका महोत्सव का आयोजन हुआ। यह कार्यक्रम खोपोली जैसे संघ के लिए कल्पानातीत था। पूज्यश्री का जब प्रवेश हुआ तब किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि खोपोली के इतिहास में इतना विराट् आयोजन हो सकेगा। मोहने, नेरल, मोहोपाड़ा और कामाठीपुरा और बोरीवली सुमेर नगर में जिन बिम्बों एवं गुरु बिम्बों की प्रतिष्ठा का निर्विघ्न कार्य सम्पन्न कर आध्यात्मिक शक्ति एवं गुरु आशिर्वाद का अनूठा परिचायक है। कर्जत एवं कामशेट में परम श्रद्धेय गुरुदेव श्री के जयन्ती के भव्य आयोजन करावाये। गुरु की शक्ति कितनी अनोखी है और वह हमारे जीवन की एक अनुपम घरोहर है। मोहने कल्याण में प्रति वर्ष गुरु जयन्ती के मेले का आयोजन करवाने का श्रेय प्राप्त किया। उनका जीवन एक अकथ कहानी है। क्योंकि जिनके जीवन की समग्र चेतना उर्ध्वमुखी है। उर्ध्व ही जिनका लक्ष्य है। वे हमेशा समाज के उत्कर्ष के प्रति ही चिंतन करते है। उनका चिंतन भी सर्वांगीण होता है। किसी एक सम्प्रदाय के प्रति नही, बल्कि सर्व धर्म समन्वय के रुप में विचारों का प्रतिपादन करते है। चिंतन के नवनीत में प्रतिती हुई कि परमात्मा की शुद्ध भक्ति ही एकता व सर्वधर्म समन्वय के निकट ला सकती है। इस लिए उन्होंने श्री पार्श्वपद्मावती महापूजनों के अनेकानेक विराट्र आयोजन महाराष्ट्र की धरा पर करवाये। न केवल मूर्ति पूजक समाज ही बल्कि जैन समाज के अन्य प्रमुख वर्गों ने भी इस भक्ति भाव को स्वीकार किया है। मन मोहक आकर्षक प्रतिमा सम्पन्न मुनिवर ने इस महापूजन से अनेक श्रावक श्राविकाओं के मनोरथ पूर्ण किये हैं। क्यों कि सिद्ध पुरुष का आशीर्वाद व उनकी वचन सिद्ध वाणी ही एक शक्ति है। आत्मा की आन्तरिक गहराई से प्रकट हुए वचन अक्षरसः सत्य हुए है। ऐसे महिमा वंत मुनि का अभिनन्दन सहज ही आत्मीय भावों से हो जाता है। कोंकणप्रदेश की धर्मप्राण जनता कृतज्ञभाव प्रकट करना चाहती थी। आत्मीयश्रद्धा की अभिव्यक्ति के रुप में "कोंकण केशरी" पद प्रदान समारोह। पूज्य प्रवर जिनकी जीवन साधना निष्काम रही है। नदी के प्रवाह की तरह जो बहती रहती है फिर कभी पीछे मुड के नहीं देखती कि मैंने किसकी प्यास बुझाई, उसने मुझे धन्यवाद दिया कि नहीं। आत्मिय गुणों से प्रेरित संत आत्माएँ भी सदा दिये चले
विश्व की प्रत्येक मानवीय क्रिया के साथ मन-व्यवसाय बंधा हुआ है।
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