Book Title: Lekhendrashekharvijayji Abhinandan Granth
Author(s): Pushpashreeji, Tarunprabhashree
Publisher: Yatindrasuri Sahitya Prakashan Mandir Aalirajpur
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है। आपने इस धर्म यात्रा के दौरान चारों सम्प्रदायों में सद्भावनाओं का सृजन किया। एक दूसरे को निकट में लाने का सुयश प्राप्त किया। महापूजन के माध्यम से कोंकण की जनता को भक्ति का एक नया आयाम दिया। __ मोहना नगर का विशाल प्रांगण भी छोटा पड़ गया था। क्योंकि आज पूज्य प्रवर की "कोंकण केशरी पद प्रदान की अभूतपूर्व समारोह था। ५ हजार से भी अधिक महाराष्ट्र की जनता अपलक नेत्रों लिए समारोह को निहार रही थी। सर्व प्रथम पूज्य श्री के "कोंकण केशरी" के शाल का चढ़ावा हुआ जो उच्च बोली बोलाकर अनन्य श्रद्धालु गुरु भक्त श्री धनराजजी राजमलजी पोसालिया सुमेरपुरवालों ने लिया। प्रथम गुरु पूजन का लाभ भीनमान निवासी श्री सायरमलजी माणकचन्दजी ने लिया।
"कोंकण केशरी" पदप्रदान समारोह में मोहने जैन संघ की ओर से अभिनन्दन पत्र पढा गया जिसमें पूज्य श्री के व्यक्तित्व की गरीमा का वर्णन किया गया था। साथ ही वीतराग देव से प्रार्थना भी की गयी कि पूज्य श्री के हाथों से और भी जयवन्ता जिनशासन के उल्लेखनीय कार्य होते रहे। संयम जीवन की शुद्ध परिपालना करते हुए दिर्घायुष्य को प्राप्त कर जैन समाज को प्रगति के पथ पर बढायें। इन्हीं मंगल कामनाओं के साथ पूज्य श्री के कर कमलों में अर्पण किया। खचाखच भरे इस समारोह के विशाल प्रांगण में जय निनादों की गुंज में पोसालिया निवासी श्री धनराजजी राजमलजी सुमेरपुर ने पूज्य श्री को "कोंकण केशरी' पद की शाल
ओढाकर, "कोंकण केशरी" पद से सम्मानित किया। 'कोंकण केशरी की जय-जयकार से आकाश मण्डल गुंज उठा १५ मिनिट तक "कोंकण केशरी" की जय-जयकारों की प्रतिध्वनी आकाश मण्डल में गुंजती रही।
इस शुभावसर पर आगामी गुरुजयन्ती । पूज्य श्री लक्ष्मणविजयजी शीतल म.सा. की गुरु जयन्ती एवं आगामी चातुर्मास के लिए भायंदर, कर्जत, मोहोपाडा, पूना निगडी, मोहना, रोहा आदि श्री संघों ने चातुर्मास के लिए भावभरी विनंतियाँ की।
कोंकण केशरी पद ग्रहण करते ही पू. मुनिराज श्री लेखेन्द्रशेखरविजयजी म.सा. ने अपनी अमृतभरी वाणी में कहा कि पूज्य दादा गुरुदेव की जयन्ती तभी हमारे जीवन में सार्थक हो सकती है जब हम गुरुदेव के बताये हुए आदर्श को हृदयांगम करें। उनका संदेश था कि सम्मान और समृद्धि से जब अहं जन्म लेता है। तब स्वयं के लिए अमंगल है। हमें देखना होगा कि गुरुदेव का यह पावन संदेश का हम अपने जीवन में कितना अमल कर पाये है। मैने अपना सम्पूर्ण जीवन गुरुदेव के बताये गये आदर्शो के पद चिन्हों पर अग्रसर होता हुआ समाज की सेवा का संकल्प लिया है। उसी संकल्प के परिणाम दो वर्ष पूर्व श्री गुरु समाधि मंदिर मोहन खेडा तीर्थ से महाराष्ट्र के लिए हम दोनों मुनियों ने प्रस्थान किया। इन्दापुर गुरु सप्तमी हेतु हमारा विहार था। कोंकण के नगरों एवं गाँवों में विचरण किया, यहाँ की जनता का हमें धर्म स्नेह मिला जिसके परिणाम स्वरुप श्रृंखला बद्ध महापूजन, प्रतिष्ठा जिनेन्द्र भक्ति महोत्सव अदि कार्यक्रम होते रह।
"कोंकण केशरी" पद से मेरा जो सम्मान किया जा रहा है वह तो ठीक है लेकिन मेरे जीवन निर्माता परम श्रद्धेये पूज्य श्री लक्ष्मणविजयजी म.सा.का परम उपकार है। जिन्होंने मेरे जीवन को पत्थर से मूर्ति बनाने का प्रयास किया है। जो कुछ है उन्हीं महापुरुष का है। उन्हीं का आशीर्वाद है हम तो मात्र निमित्त है।
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जिसे कोई चिंता नहीं होती उसकी निन्द्रा से गाढी दोस्ती होती हैं।
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