Book Title: Lekhendrashekharvijayji Abhinandan Granth
Author(s): Pushpashreeji, Tarunprabhashree
Publisher: Yatindrasuri Sahitya Prakashan Mandir Aalirajpur
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महापूजन ही महापूजन। जो भी एक बार इस महापूजन को देख लेता है, उसके मनमें सहज ही यह भाव उत्पन्न हो जाते है, कि माताजी का यह महापूजन मै भी पढवाऊँ। और अपनी अनन्य श्रद्धा भक्ति से माताजी के गुण गाऊँ। _ऐसी स्वेच्छा के वशीभुत होकर लोग अपनी पूजन पढ़ाने की भावना लेकर स्वत: ही मुनि श्री की सेवा में उपस्थित हो जाते है और अपनी महापूजन पढाने की भावना से मुनि श्री को अवगत कराते है। और मुनि श्री अपनी स्विकृति देकर उनकी इच्छा पूर्ण करते है।
और फिर माताजी की महापूजन का प्रभाव ही कुछ औसा है, कि लोग स्वत: ही खींचे चले आते है। महापूजन के जो श्रृंखला बद्ध आयोजन हो रहे है, यह प्रत्यक्ष प्रमाण है। - इसी श्रृंखला में अब यह महापूजन अरविंद कुंज तारदेव बम्बई में होने जा रही है। श्री पार्श्वनाथ जैन मंदिर अरविन्द कुंज तारदेव में यह महापूजन श्री किशोरचन्द्रजी एम. वर्धन परिवार की ओर से श्री पार्श्वपद्मावती महापूजन का भव्यातिभव्य आयोजन रखा गया। उस क्षेत्र में इस प्रकार के महापूजन का यह सर्वप्रथम अवसर था।
महापूजन के दौरान मुनिराज श्री लोकेन्द्र विजयजी म. सा. ने मां भगवती पद्मावती माताजी की भक्ति के गुणगान करते हुए फरमाया कि "श्री पद्मावती माताजी की भक्ति मे एकाकार होकर ही एक विलक्षण अनूभूति एक अत्यन्त ही आनन्द का क्षण घटीत होता है। महाआनन्द का यह क्षण अद्भूत होता है। हमें भी श्री पार्श्व पद्मावती माताजी की भक्ति में एकाकार होकर उस आनन्द को प्राप्त करना है। और इसका एक ही माध्यम है। यह महापूजन श्री पार्श्व पद्मावती महापूजन देखकर सुनकर ही उनके चमत्कार का अनुभव किया जा सकता है। जब साधक मां की भक्ति में तल्लीन हो जाता है, एकाकार हो जाता है, तब उसके भीतर हृदय में एक चमत्कार स्वयं ही घटित होता है। इसका प्रत्यक्ष अनुभव साधक स्वयं ही करता है।" इसका वर्णन करना दुष्कर कार्य है। इसलिये आत्मिक सुख प्राप्त करने के लीये निष्काम भाव से तन्मय होकर एकाकार होकर मां की साधना करनी चाहिये। इसलिये आइये माताजी के इस अनुपम अनुष्ठान में सम्मिलित होकर आत्मीय सुख और आनन्द के क्षण प्राप्त करें।
इस अवसर पर श्री किशोरचन्द्रजी एम. वर्धन ने कहा : "हम आभारी है मुनि द्रय के जिन्होंने अरविन्द कुंज में पूजन पढाने की हमारी हार्दिक भावना को साकार रुप देते हुए यहाँ पधारकर पूजन पढाकर हमारे आनन्द में द्विगुणित वृद्धि की. मुनिराज द्वय श्री के पू. गुरूवर मुनिराज श्री लक्ष्मण विजयजी म. सा. ने श्री पालीताणा तीर्थ में माताजी की साधना में एकाकार होकर २४ भुजा युक्त श्री पद्मावती माताजी के दर्शन किये थे। इससे बड़ा और चमत्कार क्या हो सकता है। उनकी साधना सिद्धि अनुपम थी और मुनि द्रय भी साधना के सोपान पार करते हुए उनके द्वारा मार्गदर्शीत राह पर अग्रसर हो रहे है।"
पूजन के मध्य घाटकोपर स्थित सर्वोदय नगर में श्री सुखराजजी नाहर भीनमाल द्वारा निर्मीत श्री मद्विजय राजेन्द्रसूरिजी म. सा. की गुरुमुर्ति प्रतिष्ठा की विनंती की गई। जिसे मुनिराज श्री ने सहर्ष स्वीकार करके गुरू मंदिर प्रतिष्ठा का मुहुर्त फाल्गुन सुदी ३ संवत् २०४७ रविवार का दिन निश्चित किया गया। __ महापूजन के पश्चात सभी निमंत्रित महापूजन में पधारे आगन्तुक अतिथियों की भक्ति स्वरुप स्वामीवात्सल्य रखा गया। यह महापूजन भी अपने आपमें एक अपूर्व था। ९ डिसेम्बर १९९० को श्री हिम्मतमलजी सुरतींगजी बागरावालों की और से यही महापूजन लालबाग में पढायी गयी।
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आत्म-दर्शन और आत्मा के जन्म मरण के भय को नष्ट करने का पुरुषार्थ ही सबसे कठिन पुरुषार्थ है।
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