Book Title: Lekhendrashekharvijayji Abhinandan Granth
Author(s): Pushpashreeji, Tarunprabhashree
Publisher: Yatindrasuri Sahitya Prakashan Mandir Aalirajpur
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परम पूज्य श्रीमद्विजय राजेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा.
एक विरल विभूति
लेखिका - साध्वी तरूणप्रभाश्री इस विराट विश्व में निरंतर रंग पलटते रहते हैं। जिसमें मानव का जीवन एक पानी के बुलबुले के समान है - "पानी ऐसा बुदबुदा, इस मानस की जात, देखत ही छप जायेंगे, ज्यों तारा परभात। इस धरती पर अवतरित होना और मृत्यु का ग्रास बन जाना नित्य सा खेल है। उसमें उसी का जन्म ग्रहण करना सार्थक है जिसके द्वारा अपनी एवं प्राणी मात्र की भलाई कर सके। अपने वंश का गौरव बढा सके। अपने कुल का नाम ऊंचा उठा सके। नहीं तो इस परिवर्तित संसार में निरन्तर हजारों लाखों पैदा होते हैं और मृत्यु के ग्रास बन जाते है। उनकी ओर कौन लक्ष्य देता है? परन्तु जो प्राणी मात्र की भलाई चाहने वाला, परोपकार करने वाला, दुसरों के दु:ख को स्वयं का दु:ख समझने वाला है!, उसका नाम मर जाने पर भी इस संसार के चित्रपट पर विराजमान रहता है। उसके यश रुपी शरी तो बुढापा आता है। न मृत्यु ग्रास कर सकती है। वे अपनी कीर्ति के द्वारा अमर हो जाते हैं। ऐसे अमर कीर्ति सतपुरुषों का नाम सभी लोग बड़ी श्रद्धा के साथ लेते हैं। ऐसे ही विरले सज्जनों में श्री परमपूज्य श्रीमद्विजयराजेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. भी एक हैं। जिन्होंने अपनी काव्य साधना साहित्य चिंतन एवं तपश्चर्या द्वारा अपने जीवन को एक अनमोल हीरे के समान बना दिया। जैसे हीरा समस्त पहलुओं से प्रकाश फैलाता है। उसी प्रकार आपकी शारीरिक, मानसिक एवं वाचिक पवित्रतासे, ज्ञान, दर्शन, एवं चारित्र की रश्मियां प्रकाशित हो रही हैं।
आपने अपने साहित्य द्वारा जैन समाज में जाग्रति व क्रांति का एवं सामाजिक सुधार का उद्घोष किया। जो समाज विभाजित था उसे एकता के सूत्र में बांधा। आपने लगभग ६१ ग्रन्थों की रचना की। उसमें सबसे बड़ा ग्रन्थ है "श्री अभिधान राजेन्द्र कोष। जो लगभग सात भागों में विस्तृत है। इस ग्रन्थ में कुल मिलाकर ९२०० पृष्ठ हैं। इस ग्रन्थ में आपने समस्त विषयों का रहस्य उद्घाटित कर दिया है। इस प्रकार कोई भी विषय ऐसा नहीं है जो इस ग्रन्थ से अलग है।
आपके इस अमर ग्रन्थ की भारतीय विद्वानों ने ही नहीं अपितु जर्मन, जापानी, अमेरिकन, फ्रान्सीसी आदि कई विदेशी विद्वानों ने भी मुक्त कंठसे प्रशंसा की है।
परमपूज्य गुरुदेव श्रीमद्विजयराजेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. का जीवन व्यापक एवं विराट था। उनका परिचय शब्द श्रृंखला की कड़ियों में आबाद्ध करना सूर्य को दीपक दिखाना है। उनका आध्यात्मिक विश्व रंगीन गुण रुपी पुष्पों से सुरभीत था। भौतिक जगत में पदार्थों की मनोरम विचित्रता पायी जाती है वैसे ही सत्यदृष्टा पूज्य गुरुवर के जीवन में दिव्य एवं भव्य भावों की प्रचुरता उपलब्ध होती है। आपके त्याग की गरिमा सम्मानित अपराजित एवं साहस से आज भी चमत्कृत
है।
क्षत्रीय का सच्चा शृंगार, शौर्य, साहस और त्याग ही है।
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