Book Title: Lekhendrashekharvijayji Abhinandan Granth
Author(s): Pushpashreeji, Tarunprabhashree
Publisher: Yatindrasuri Sahitya Prakashan Mandir Aalirajpur
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स्थापना गुरु की यश: कीर्ति को शाश्वत रुप दिया।
सदा प्रसन्नचित्त, हँसमुख चहेरा एवं तेजोदीप मुखमंडळ की आभा जन-जन को आकर्षित करती है। कोंकण क्षेत्र के अधिकांश नगरों में विचरण कर आपने अभिनव कीर्तिमान स्थापित किया। इस यात्रा के दौरान महान कीर्ति श्री शंखेश्वर में श्री पार्श्वपदमावती शक्तिपीठ गुरु लक्ष्मण ध्यानकेन्द्र की स्थापना के लिए आपने घोषणा की और शक्ति पीठ का स्वप्न साकार हो गया। आपने शंखेश्वर की पावन धरा पर संकल्प लिया था कि हम श्री पार्श्व पदमावती महापूजनो का १०८ का आयोजन करेंगे। जिसका अंतिम पूजन श्री शंखेश्वर में होगा। संकल्प के धनी पूज्यश्री ने अल्प समय में ही ६२ महापूजनों को शानदार एवं भव्य रुप में सम्पन्न किया। आप स्वयं उपासक हैं, सिद्ध वचन की गरिमा से युक्त हैं और नयनों से साधना की ज्योति प्रकाशित होती है।
पूज्य श्री लेखेन्द्रशेखर विजयजी का सबसे छोटा भाई होने का मुझे गौरव प्राप्त हुआ है। पुण्य संयोग से आठ वर्ष की उम्र से ही गृह त्यागकर आपकी पवित्र सेवा का सौभाग्य मिला है। उनके हर कार्य में सहभागी बनकर समाज सेवा करने का मेरा संकल्प है। मेरे जीवन विकास में आपका महान योगदान है और मुझे निरंतर प्रगति पथ पर अग्रसर करने के लिए प्रयत्नशील हैं। अपना अहोभाग्य समझता हूं कि ईस लेख के द्वारा मुझे विस्तार से आंतरिक भावनाएं व्यक्त करने का अवसर मिला। पूज्य मुनिश्री ऐसे युवा धर्मपुरुष हैं जो अपनी समग्र तेजस्विता और कार्य द्वारा धर्म एवं समाज को चेतनता प्रदान कर रहे हैं। धर्म पुरुषों की पावन श्रृंखला में पूज्य मुनिश्री लेखेन्द्रशेखर विजयजी भी जड गये हैं जिनकी यशोगाथाएं इतिहास सदा गाता रहेगा। भावभरा अभिनंदन एवं वंदना।
• पल-पल जो जागृत रहे, वह साधू। निद्रा में भी जो जागृत हो वह साधु जब संसार के अनेक प्राणी सुख-दु:ख की अनन्त कल्पनाओं के बीच थक कर सो गये होते है तब साधू-जन सभी प्रकार के सुख दुःख की विभूति लगा कर आत्म-सचेत दशा में विचरण करता रहता है। इनकी निद्रा शरीर की थकावट उतरने हेतु नही, मात्र कायस्वभाव होती है।
सज्ञान के बिना मुक्ति नहीं। सद्ज्ञान के बिना अनन्त सुख की भी उपलब्धि नहीं।
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