Book Title: Lekhendrashekharvijayji Abhinandan Granth
Author(s): Pushpashreeji, Tarunprabhashree
Publisher: Yatindrasuri Sahitya Prakashan Mandir Aalirajpur
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की खबर विद्युततरंग की भांति फैल गई। और मंदिर में दर्शनार्थियों का तांता लग गया। "गुरुदेव की जय" से गगन मंडल गुंज उठा।
मोहना नगर (कल्याण) में इस महत्वपूर्ण प्रतिष्ठा समारोह में जिन महानुभावो ने अपने-अपने धन का सदुपयोग कर चढावे लिये उनका विवरण निम्न अनुसार है। १) छत्री में मुलनायकजी श्री अजितनाथ स्वामी
शा श्री ओटरमलजी शेषमलजी- कल्याण २) श्री राजेन्द्रसूरि गुरुमुर्ति
शा श्री. चन्दनमलजी जोधाजी मोहना ३) भगवान की ध्वजा
शा. श्री चन्दनमलजी मुथा मोहना ४) श्री राजेन्द्रसूरिजी की ध्वजा
शा. पुखराजजी भगवानजी आहोर (राज.) ५) तोरण
शा. श्री गुलाबचन्दजी मोटाजी ६) छत्री पर दण्ड
शा. श्री पुखराजजी भगवानजी आहोर (राज.) ७) कलश श्री अजितनाथजी
शा. श्री दलिचन्दजी चमनाजी, कल्याण ८) गुरुमंदिर पर कलश दण्ड
शा. श्री पुखराजजी भगवानजी
"कामली ओढाना' पू. मुनिराज श्री लेखेन्द्रशेखर विजयजी/पू. मुनिराज श्री लोकेन्द्र विजयजी म.सा. व साध्वी श्री पुष्पाश्रीजी म.सा.को कामली ओढाने का लाभ निम्न अनुसार है। १) पू. मुनिराज श्री लेखेन्द्रशेखर विजयजी म.सा.
शा. श्री बाबुलाल जोधाजी मोहना २) मुनिराज श्री लोकेन्द्र विजयजी म.सा.
मे. ममता किराणा स्टोर्स मोहना ३) साध्वी श्री पुष्पाश्रीजी
शा श्री सांकलचन्दजी शेषमलजी भास्कर, कल्याण.
मोहना नगर में प्रतिष्ठा के कार्यक्रमों के सानन्द निर्विघ्न समाप्ति के पश्चात वह दिन आया जब मुनि श्री यहाँ से अन्यत्र विहार करनेवाले थे। रात्रि चर्चा के दौरान मुनिराज द्वय ने श्री संघ के सदस्यो से विहार करने की बात कही।
२२ फरवरी १९८९ को सुबह विहार कार्यक्रम तय हुआ। विदाई का दुख किसे सहन होता है! फिर भी ऐसा समय आ ही जाता है जब विदाई लेनी और देनी पड़ती है। जिसने सुना वही अनमनासा उदास हो गया। अनमने मन से ही सही विदाई तो देनी ही थी सो सबेरे जल्दी ही लोग विदा देने के लिये उपाश्रय में एकत्रित हो गये मुनिद्रय उपाश्रय के बाहर निकलेही
जहां प्रेम, करुणां, वात्सल्यं और साधुत्व है उसी की जय होगी।
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