Book Title: Lekhendrashekharvijayji Abhinandan Granth
Author(s): Pushpashreeji, Tarunprabhashree
Publisher: Yatindrasuri Sahitya Prakashan Mandir Aalirajpur
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में रथयात्रा का आयोजन था। और सुबह से ही इसकी तैयारियां चल रही थी आजका विशेष आकर्षण महालूंगे इंगले का ढोल मंडल था। सुबह वह यहाँ आ गये थे। और ढोल बजा बजा कर विविध प्रकार से मंजीरो की लय मिलाकार अम्बामाता के स्वरुप का वर्णन दिखा रहे थे! वास्तव में इनके वाद्य यंत्रो की लय ही एक विचित्र प्रकार की थी।
वरघोडे की पूर्ण तैयारी को ध्यान में रखकर मुनिराज श्री लेखेन्द्रशेखर विजयजी म.सा. ने सभी से रथयात्रा को विवर्धित करने की अपील की। निर्धारित समय पर दोपहर ढाई बजे रथयात्रा शुरु हुई। इन्द्रध्वजा, घोडे पर सवार युवक धर्म ध्वज लिये हुए था। फिर महालूंगे इंगले का मंडल ढोल की आवाज और मंजीरों की झंकार से दर्शको का मनोरंजन कर रहे थे। मोहना नगर के निवासी छज्जों, चौबारों, गलीयों से बडे कुतुहल से इस रथयात्रा को देख रहे थे।
रथयात्रा में सबसे आगे इन्द्रध्वजा महालूंगे इंगले का युवक मंडल, धर्मध्वज लिये हुए घुडसवार, रथ, सुससज्जीत जीप, जैन बालीका मंडल कल्याण पनवेल का ऑरकेस्ट्रा बैण्ड कच्छी गुज. बालीका मंडल (मोहना) और फिर विशाल जनसमुह के साथ मुनिराज द्रय, साध्वी मंडल महिलाएँ आदि शोभायमान थे। यह रथयात्रा मोहना नगर के बाजार से गुजरती हुई एन.आर.सी. कम्पनी के कम्पाउण्ड से एन.आर.सी. कालोनी होती हुई शाम को करीब ६ बजे वापस जैन मंदिर आकर समाप्त हुई। जैन मित्र मंडल का सराहनीय योगदान रहा! उन्होने रथ यात्रा का सफल संचालन किया। वास्तव में यहाँ का युवा वर्ग धन्यवाद का पात्र है।
गगनभेदी जय घोष के साथ युवक वर्ग एक नारा और भी लगा रहे थे। "लेखेन्द्र लोकेन्द्र आये है। नई रोशनी लाए है।"
रथयात्रा में महिलाओंने शुभसुचक १४ स्वप्न अपने सिर पर धारण किये थे।
नवयुवक युवतियाँ मस्ती में सरोबार होकर स्तवन भजन गा रहे थे, नाच रहे थे, डांडीया नृत्यु कर रहे थे।
मतलब यह कि आज का पुरा वातावरण अत्यन्त आनन्दित और उल्हासित था। सभी के मुख मंडल पर एक अजिब सी आभा चमक रही थी।
रात्रि में ९ बजे धर्मशाला में मुनिराज द्वय की शुभ निश्रा में बाकी रहे चढावे बोले जाने थे। इसके लिये समस्त जैन संघ के सदस्य उपस्थित हो गये थे। मुनिद्वयने आकर प्रारंभिक मंगलाचरण शुरु कर चढावे बोले जाने की आज्ञा प्रदान की! प्रतिष्ठा के बाकी रहे चढावे सोल्लास उदारता पूर्वक बोले गये।।।
१७ फरवरी १९८९ का यह शुभदिन मोहना नगर के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित किया जावेगा। आज का दिन प्रतिष्ठा का दिन है। आज आहोर निवासी शा पुखराज भगवानजी परिवारवालों की वर्षों पूर्व की इच्छा पूर्ण होने जा रही है। इन्ही के द्वारा निर्माण किये गये जिन मंदिर में प्रभु प्रतिष्ठा व गुरुमुर्ति प्रतिष्ठा की जा रही है। प्रात: जल्दी ही लोग नव परिधानों में सज्जित होकर पांडाल में इकट्ठे हो रहे थे। भीड में अनेक तरह की चर्चाए हो रही थी। चर्चा का मुख्य केन्द्र बिन्दु था, मुनिराज श्री लेखेन्द्रशेखर विजयजी एवं मनिराज श्री लोकेन्द्र विजयजी म.सा.का शांत शीतल स्वभाव और मिलनसार व्यक्तित्व अन्यों को समझने की कला।
और अब ठीक ८ बजे शुरु हो गई, प्रतिष्ठा के पहले की गुंजायमान ध्वनि "ॐ पूण्याहां-पूण्याहां, प्रियन्ताम्-प्रियन्ताम्" ज्यों ज्यों प्रतिष्ठा का समय निकट आता जा रहा है। वैसे वैसे उत्साह
मैले मन के एक-दो नही अनेकानेक स्वरुप होते है।
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