Book Title: Lekhendrashekharvijayji Abhinandan Granth
Author(s): Pushpashreeji, Tarunprabhashree
Publisher: Yatindrasuri Sahitya Prakashan Mandir Aalirajpur
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१८ अगस्त १९८९ को एक भव्य रथयात्रा का आयोजन किया गया।श्री नमस्कार महामंत्र आराधना के सानन्द निर्विघ्न सम्पन्न होने के उपलक्ष में इस रथयात्रा का आयोजन किया गया था। शहनाई की मंगल ध्वनि के साथ मुनिराज श्री लेखेन्द्रशेखर विजयजी, मुनिराज श्री लोकेन्द्र विजयजी म.सा. एवं साध्वी श्री पुष्पाश्रीजी आदि ठाणा ६ की शुभनिश्रा में यह चल समारोह प्रतापहाल से शुरु हुआ। कल्याण का अरिहन्त जैन बैंड मंडल रथयात्रा की शान था। श्री चन्दनबाला बालिका मंडल डांडीया नृत्य करते हुए चल रही थी।
और अब आ गया समग्र जैन जगत का महान पर्व पर्वाधिराज पर्युषण महापर्व। दिनांक २८ अगस्त को प्रारंभ हुए चातुर्मास काल में आध्यात्मिक दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण पर्व पर्दूषण ही है। पर्युषण महापर्व शुरु होते ही इसकी उपासना के लिये प्रत्येक प्राणी प्रत्येक आत्मा में आनन्द उमंग का संचार होने लगता है। आबाल, वृध्द, यूवक, नर, नारियाँ उपासनाओं की होड में लग जाते है। पू. साधु साध्वीयों के प्रेरणा व मार्गदर्शन से आठ दिन तक सम्पूर्ण जैन जगत धर्ममय हो जाता है। जो व्यक्ति साल भर तक समया भाव के कारण धार्मिक क्रियाएं नहीं कर सकता है वह श्रद्धापूर्वक इस महापर्व में आठ दिन तक श्रद्धा पूर्वक करता है। ज्ञान-ध्यान, व्याख्यान श्रवण तप-त्याग आदि की झडीसी लग जाती है।
यशवंत हाल धर्म प्रेमियों से खचाखच भरा हुआ था। सभी उपस्थित जन समुदाय मुनिराज श्री के व्याख्यान सुनने को उत्सुक थे। मुनिराजश्री लेखेन्द्रशेखर विजयजी म.सा. ने अपने प्रवचन में कहा कि-"आज पर्वाधिराज पर्युषण महापर्व शुभ एवं मंगल संदेश के साथ हमारे अंधकारमय जीवन में प्रकाश पुंज फैलाने आया है। यह पर्व लोकोत्तर पर्व है। इसमें आत्म साधना, आत्माशुद्धि एवं कर्म निर्जरा से उर्ध्वगति प्राप्त की जाती है।"
मुनिश्री ने तपस्याओं की चर्चा करते हुए अठ्ठम तप और अठ्ठाई तप का विशेष महत्व बताया। उपवास करने से आत्म जागृति उत्पन्न होती है। इसके पश्चात पू. मुनिराजश्री लोकेन्द्रविजयजी म.सा. ने अपने प्रवचन में फरमाया कि आत्मा में परमात्मा को प्रविष्ठ होने दे। हृदय में संकल्प शक्ति की आवश्यकता है। मुनिराज श्री में अभयदान को सर्वश्रेष्ठ दान बताया।
पर्युषण पर्व के अवसर पर रात्रि में प्रभु भक्ति का आयोजन रखा गया था। प्रभु भक्ति में अरिहन्त मंडल-कल्याण, श्री जैन संगीत मंडल-लोनावाला, श्री बालिका मंडल-कर्जत, श्री मुनिसुव्रत मंडल-अम्बरनाथ, श्री अमीझरणा मंडल-कल्याण ने अपने नुतन स्तवनो में भक्तिरस विभोर किया।
पू. मुनिराजश्री लोकेन्द्रविजयजी म.सा. ने आचारांग सुत्र के महत्व को समझाते हुए कहा-"अनुकुल प्रतिकुल परिस्थितियों में राग द्वेष का भाव न रखकर मैत्री दया पूर्ण शांत भाव रखे। कितनी भी तपस्या क्यों न करे, अगर कषाय भाव भी उत्पन्न हो गया, तो सारी की सारी तपस्या व्यर्थ हो जायेगी। मन में क्लुषित नहीं रखना चाहिये।"
महापर्व श्री पर्युषण के विभिन्न आयोजनों से पूरा जैन समाज धर्ममय बन गया था। मासक्षमण सोलभद्धा, १५ उपवास, अठ्ठाई, अठ्ठम की तपस्याए हुई। पू. मुनिश्री ने कल्पसुत्र वाचन कर सार तताया कि हे आत्मन् प्रबल पूण्योदय से ही यह मानव भव मिला है लेकिन धर्म का श्रवण तो महापुण्य से ही मिलता है।
१ सितम्बर १९८९ भाद्रपद सुदी १ का दिन। आज पर्युषण पर्व के अन्तर्गत महावीर जन्म वाचन का दिन है। आज भगवान महावीर स्वामी का जन्मदिन मनाया जा रहा है। सभी लोग यशवन्त हाल के विशाल प्रांगण की ओर जा रहे है। मुनिश्री यहीं पर प्रभु श्री महावीर स्वामी
मन जब लागणी के घाव से घवाता है तब कठोर बन ही नहीं सकता
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