Book Title: Lekhendrashekharvijayji Abhinandan Granth
Author(s): Pushpashreeji, Tarunprabhashree
Publisher: Yatindrasuri Sahitya Prakashan Mandir Aalirajpur
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का जन्म वांचन करने वाले है। दोपहर में जन्म वांचन हआ और श्रीफल वधारकर आनन्द से प्रभु जन्म की खुशी मनाई गई। सभी एक दूसरे को श्रीफल खीला खीला कर खुशी जाहिर कर रहे थे। पश्चात विशाल वरघोडा निकाला गया। इन्द्रध्वजा, शहनाई वादन, बैण्ड, हाथी घोडे, भैरव बैण्ड कल्याण और प्रभुपालखी आदि से सजीत वरघोडा एक आनन्ददायी दृश्य उत्पन्न कर रहे थे। मुनिराज श्री और साध्वी समुदाय सहित अपार जन मेदनी समारोह की द्विगुणीत वृद्धि कर रहे थे। ऐसा प्रतित हो रहा था, मानो कि कल्याण नगर के समस्त धर्मप्रेमी शीव सुख लूट रहे हो। नाचते हुए गाते हुए आबाल वृद्ध, नर, नारी हर्षित होकर गा रहे थे। "सिध्दार्थ को लाडलो, महावीर झुले पालनीये," "म्हारा महावीर ने फूलडे वधावू थोने मोरा साहेब वेगा तेडाया मोडा कनवत आयाजी," ढोलक की मधुर ताल अनोखा आनन्द प्रदान कर रही थी।
चल समारोह में भगवान महावीर का एक नारा- "अहिंसा परमो धर्म" "जब तक सुरज चांद रहेगा-महावीर तेरा नाम रहेगा' आदि नारों से कल्याण नगर प्रतिध्वनित हो रहा था। यह रथयात्रा गांधी चौक, शंकरराव चौक, शिवाजी चौक से होते हुए महम्मद अली चौक पहुँची। श्री महावीर प्रभु के पालने का चढावा शा श्री हरकचन्दजी नैनमलजी ने लिया था। रथयात्रा श्री महावीर चौक में विसर्जित हुई।
४ सितम्बर भाद्रपद सुदी ४ आज पर्युषण पर्व का अन्तिम और अत्यन्त ही महत्वपूर्ण दिन । आज 'सांम्वतसरिक प्रतिक्रमण' है। और इस क्रिया कों जैन समाज का प्रत्येक जीव अबाल वृद्ध, युवक, नर नारीयां सभी आत्म प्रसन्नता से पूर्ण करते है। क्योंकी इस प्रतिक्रमण से संसार में रहे हुए जीव मात्र से क्षमा याचना की गई है।
पू. मुनिराजश्री लेखेन्द्रशेखर विजयजी म.सा.ने अपने प्रवचन में फरमाया कि, “यदि संवत्सरी का कोई प्राण है यदि पर्दूषण की कोई सफलता है तो वह क्षमापना है। क्षमा धर्म ही आत्मा को सफलता के उच्चतम शिखर पर ले जाता है। तप करके भी जो कषायों से मुक्त नहीं हुए है वे इस पावन पर्व पर भी वैसे ही कोरे रह जाते हैं! सवत्सरी के दिन भी आहार करने वाले मुनिश्री कुरगडु मुनि क्षमा धर्म की उच्चाराधना करके तीर गयें। जिन शासन के इस महत्व को समझ कर वैरभाव भूल कर, एक दूसरे के गले मिलकर, अहंकार के विष को क्षमा के समुद्र में मिल जाने दो। एक दूसरे को क्षमा प्रदान कर आत्मा को पवित्र बनाओं। सांवत्सरिक क्षमापना का यह पावन दिन वर्ष भर में सिर्फ एक बार आता है। यदि अज्ञान वश यह दिन हाथ से निकल गया, तो फिर पूरे वर्ष पछताना पडेगा। और फिर वर्ष भर जीयेंगे या नहीं इसकी क्या खात्री है। और पश्चाताप के बिना कुछ भी बचेगा नहीं। क्षमाभाव रखने वाला सबसे महान है। किन्तु क्षमा मांगने वाला, क्षमायाचना करनेवाला उससे भी बड़ा है। अत: हमें आज क्षमाभाव ही रखना है। हम आज एक दूसरे की विगत वर्ष में हुई भूलों को भूलकर क्षमा देते और लेते हुए यह संकल्प करे कि केवल पर्युषण के दिनोंमें ही नहीं वरन् प्रतिदिन हम स्वयं को निहारते रहे। क्षमा भाव के बिना तो यह जीवन ही अधुरा है। शुन्य है।"
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मानव जब परास्त होता है, हारता है, तब भी अपना दोष देखने जितना निर्मल-पवित्र नहीं बन सकता।
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