Book Title: Lekhendrashekharvijayji Abhinandan Granth
Author(s): Pushpashreeji, Tarunprabhashree
Publisher: Yatindrasuri Sahitya Prakashan Mandir Aalirajpur
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अपना चातुर्मास काल समाप्त करने के उपलक्ष में मुनिश्री ने प्रेरणादायी प्रवचन दिया। मुनिद्वय ने कल्याण श्री संघ का आभार मानते हुए जाने-अनजाने में हुई गलती के प्रति क्षमायाचना की। और चातुर्मास कराने वाले श्रीश्रीमाल परिवार को अर्न्तमन से आशिर्वाद दिया । इनकी वाणी में, प्रवचन में इतना माधुर्य था कि उपस्थित जन समुदाय के नेत्र बरबस ही गीले हो उठे। यह आत्मीय स्नेह का अनुठा उदाहरण है।
कल्याण के चातुर्मास पूर्ण होने के बाद कल्याण में ही कुमारी रीम्पल के दीक्षोत्सव का कार्यक्रम शुरु हुआ । कल्याण नगर स्थित नारायण वाड़ी में कुमारी रीम्पल की दीक्षा का भव्य कार्यक्रम रखा गया। परम्परानुसार दीक्षा के पहले कु. रीम्पल द्वारा वर्षीदान करने का वरघोड़ा निकाला गया । वरघोड़े में दीक्षार्थीनी के उत्साहवर्धन स्वरूप नारे लगाये गये- " दीक्षार्थी अमर रहो।" "कु. रीम्पल ने क्या किया सांसारिक सुखों का त्याग किया" । नगर परिभ्रमण कर वरघोड़ा दीक्षास्थान पर सम्पन्न हुआ। दीक्षा विधि के दौरान कु. रीम्पल का संक्षिप्त परिचय दिया
गया।
"कु. रीम्पल मध्यप्रदेश के गांव बाग जिला घार निवासी शा. विमलचन्दजी मन्नालालजी की सुपुत्री है। वे ७ वर्ष की अल्पायु से ही पूर्व संचित शुभ परिणाम के फलस्वरुप साध्वी श्री पुष्पाश्रीजी, साध्वी श्री हेमप्रभाश्रीजी की छत्रछाया में रहकर विरति मार्ग पर अग्रसर है। उनकी सांसारिक बड़ी बहन और वर्तमान में साध्वी श्री रत्नरेखाश्रीजी म.सा. भी साध्वी पुष्पा श्री जी की सुशिष्या है।
कु. रीम्पल ने १४ वर्ष की आयु में मगसर वदि ५ दि. १७-११-८९ को मोक्षप्रदायिनी, भवतारणी दीक्षा ग्रहण की।
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दीक्षा का कार्यक्रम विधिविधान पूर्वक मुनिराजद्वय ने पूर्ण किया। कु. रीम्पल का दीक्षा के पश्चात् साध्वी श्री कल्पादर्शिता श्रीजी के नाम से नामकरण किया गया। और साध्वी श्री पुष्पा श्रीजी की शिष्या घोषित की गई।
बजे शुभ मुहुर्त में मुनिराजद्वय ने साध्वी श्री पुष्पा श्री जी विहार किया। कल्याण नगर के श्रद्धालु श्रावक श्राविकाओं ने करते हुए विदाई दी। विदाई के अवसर पर मुनिराज श्री ने " समय परिवर्तनशील है। साधु नियम के नही।"
दीक्षा के कार्यक्रम के समाप्त हो जाने के बाद दिनांक २०-११-८९ को सुबह सवासात
आदि ठाणा ७ के साथ मंगल अश्रु पुरित नैत्रों से मंगल गान उपस्थित जन समुदाय को कहा : अन्दर ही एक स्थान पर ठहरते है। नियम के पश्चात
पू. मुनिद्वय ने साध्वी समुदाय के साथ बम्बई महानगर की और प्रस्थान किया । बम्बई के उपनगर गोरेगांव में शाह रुपचन्दजी हंजारीमलजी की ओर से दिनांक १४ दिसम्बर १९८९ को श्री पार्श्व पद्मावती माताजी की महापूजन का आयोजन मुनिद्वय की शुभ निश्रा में रखा
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गया था।
इस महापूजन को सानन्द सम्पन्न करके मुनिराजद्वय बम्बई के उपनगरों में विचरण करते हुए धर्म प्रभावना करते हुए पुनः कल्याण नगर पधारे। कल्याण नगर में दिनांक ३१ दिसम्बर १९८९ को श्री एस.के. हींगड़ और श्री जी. पी रांका की ओर से श्री पार्श्वपद्मावती महापूजन का भव्यातिभव्य आयोजन रखा गया था। अति उल्हास के वातावरण यह पूजन सम्पन्न हुई।
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मन की गति में थोडा विराम आता है।
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