Book Title: Lekhendrashekharvijayji Abhinandan Granth
Author(s): Pushpashreeji, Tarunprabhashree
Publisher: Yatindrasuri Sahitya Prakashan Mandir Aalirajpur
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जन समुदाय को सम्बोधित कर कहा- "जन जन के मन में धर्म के प्रति अटूट श्रद्धा उत्पन्न हो और वे ऐसे ही धर्म कार्य करके जिन शासन की सेवा करे। जिससे धर्म जागरण की चेतना बनी रहे। हमारा महाराष्ट्र प्रदेश विचरण का मुख्य उद्देश्य भी यहीं है। सभी में आपस में सौहार्दु भाव बना रहे। भगवान महावीर ने अपने संदेश में अहिंसा तप - दान - दया का महत्व बताया वह अक्षुण्ण बना रहे। सभी जीवों में भ्रातृत्व भाव उत्पन्न हो यही अभ्यर्थना।"
इस प्रतिष्ठा समारोह की सभा में श्री पार्श्व पद्मावती शक्तिपीठ गुरु लक्ष्मण ध्यान केन्द्र के ट्रस्टी गण में से श्री राजेशकुमारजी जैन बडौदा, श्री चन्दनमलजी मुथा मोहना, श्री ओटरमलजी श्री श्रीमाल कल्याण तथा श्री रमेशभाई बेचराजी वाले उपस्थित थे। मुनिराज श्री जहाँ भी जाते है, पार्श्व पद्मावती शक्ति पीठ की गतिविधियों की जानकारी देते है। तथा दान दाताओ द्वारा नई नई घोषणाएँ होती रहती हैं।
नेरल में प्रतिष्ठा के अवसर पर जिन महानुभावों ने चढ़ावे बोल कर स्वपार्जित धन का सदुपयोग किया उनका विवरण निम्न अनुसार है। (१) श्री मुलनायक मुनिसुव्रत स्वामी विराजमान:
शा. श्री सागरमलजी सरदारमलजी (२) ध्वजा:
शा. श्री वीरचन्दजी आयदानजी (३) कलश:
शा. श्री वेलजीभाई नाथाभाई (४) प्रतिष्ठा के दिन बड़ी नवकारसी:
शा. श्री मियाचन्दभाई वालाजी परिवार (५) कामली ओढाना:--
मुनिराज श्री लेखेन्द्रशेखर विजयजी :शा. श्री वीरचन्दजी आयदानजी मुनिराज श्री लोकेन्द्र विजयजी:शा. श्री मियाचन्द वालाजी साध्वी श्री पुष्पाश्रीजी:शा. श्री फुटरमलजी चौथमलजी
इस महिमावंत प्रतिष्ठा समारोह को सानन्द निर्विघ्न सम्पन्न करने में श्री मुनिसुव्रत स्वामी सेवा मंडल एवं श्री मियाचन्दजी वालाजी परिवार, शा. श्री मोहनलालजी पूनमचन्दजी, श्री रमेश छोगमलजी, श्री गणेशमलजी, श्री बाबुलालजी, श्री देवीचन्दजी, श्री वीरचन्दजी आयदानजी, श्री ओटरमलजी हजारीमलजी, श्री सागरमलजी जीवराजजी आदि कई अन्य महानुभावोने प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग प्रदान कर जो अद्वितिय सेवा कार्य किया वह नेरल के इतिहास में सदैव याद किया जाता रहेगा।
सभा विसर्जन पश्चात सभी आगत अतिथि पवित्र और मधुर स्मृति लेकर विदा हुए।
अभिनय का वेष धारण करना और साधुता का हृदय धारण करना, दोनों के बीज आकाश-पाताल या प्रकाश-अंधकार समान अंतर हैं।
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