Book Title: Lekhendrashekharvijayji Abhinandan Granth
Author(s): Pushpashreeji, Tarunprabhashree
Publisher: Yatindrasuri Sahitya Prakashan Mandir Aalirajpur
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कल्याण चातुर्मास स्थल मुनिद्वय ने आकुर्डी से १२ जून १९८९ को उग्र विहार कर दिनांक १५ जून १९८९ को कर्जत नगर में मंगल प्रवेश किया। कर्जत में इसी दिन रात्रि में ९ बजे श्री संघ की एक बैठक का आयोजन किया गया। पू. मुनिश्री लेखेन्द्रशेखर विजयजी.म.सा. और मुनिश्री लोकेन्द्रविजयजी म.सा.की शुभ निश्रामें बैठक की कार्यवाही शुरु हुई। मुनि श्री ने श्री संघ को कर्जत गांव में ही श्री नमिनाथ जिन मंदिर के निर्माण कार्य के प्रति जागृति लाने हेतू प्रवचन दिया। कर्जत मंदिर के ट्रस्टीगण ने सकल श्री संघ के समक्ष यह प्रस्ताव रखा, कि यदि पू. मुनिद्रय अपने पुनित करकमलोंसे इस कार्य का शुभारंभ करेंगे तो यह कार्य शीघ्र ही पूर्ण होगा। श्री संघ के समस्त श्रावकोने मुनिद्वय के प्रति अपनी आत्मिक श्रद्धा व निस्वार्थ प्रेम प्रकट करते हुए इस शुभ कार्य को पूर्णत: सम्पन्न करने हेतु नए ट्रस्टी मंडल को मंदिर निर्माण की समस्त जिम्मेदारी सौंप दी।
जीवन कैसे जिया जाये, जीवन की दिशा क्या हो, कैसे अपने आपको पुण्य कार्य हेतु प्रेरित किया जाये? जीवन में कहाँ और कैसे सार्थकता है? समय एवं धन का कैसे सदुपयोग किया जाये? ये अन्यान्य प्रश्न है। और इन प्रश्नों का उचित समाधान करते है। श्रमण संघ श्रमण भगवन्त शीक्षा देते है! उपदेश देते है! मार्गदर्शन करते है। मनुष्य को मोह निंद्रा से जगाते है। जगत के प्रति सतत् सावधान और धर्म के प्रति जागृति पैदा करने के लिये ही श्रमण भगवंत विचरण करते है। श्रावक इस तथ्य से अवगत है और कर्जत के श्रावक इसके अपवाद नहीं है।
इसलिये पू. मुनिराज श्री लेखेन्द्रशेखर विजयजी और मुनिराजश्री लोकेन्द्रविजयजी तथा साध्वीश्री पुष्पाश्रीजी आदि ठाणा ६ की शुभ निश्रा में प्रबल पूण्योदय से एक बहुप्रतिक्षीत इच्छा साकार होने लगी। २६ जून १९८९ के दिन शुभ मुहुर्त में शा श्री केशरीमल नवलाजी परिवार ने इस संकल्प का पूण्यलाभ प्राप्त किया।
कर्जत में २९ जून को शा श्री हस्तीमलजी जीवराजजी परिवार ने शिलान्यास सम्पन्न करने का लाभ प्राप्त किया दोपहर ३ बजे श्री पार्श्वपंच कल्याणक पूजन का आयोजन किया गया और प्रात: समय स्वामी वात्सल्य रखा गया।
कर्जत से विहार कर मुनिश्री साध्वी मंडल सहित मोहना नगर पधारे। मोहना नगर में ४ दिन की स्थिरता के पश्चात १२ जुलाई को मुनिद्रयने मंगल विहार कर कल्याण की ओर चल पडे।
पूज्य मुनिराजश्री के चातुर्मास हेतु कल्याण नगर में जोरदार तैयारी की गई थी। स्थान स्थान पर स्वागत द्वार बनाये गये थे। कल्याण का प्रत्येक धर्मप्रेमी जन उन क्षणों की प्रतीक्षा तीव्रता से कर रहा था जब मुनिद्वय के चरणों का पारस स्पर्श उस क्षेत्र को स्वर्णिम आभा प्रदान करने वाला था। .
पू. मुनिद्वयश्री लेखेन्द्रशेखर विजयजी और मुनिराजश्री लोकेन्द्रविजयजी और साध्वीश्री पुष्पाश्रीजी आदि ठाणा ६ ने १२ जुलाई १९८९ को प्रात: १० बजे चातुर्मास हेतू कल्याण नगर में मन भावन श्री अरिहन्त जैन युवक बैण्ड मंडल के वाद्ययंत्रो की सुमधुर ध्वनि और जय जयकार से प्रतिध्वनित आनन्दपूर्ण वातावरण में मंगल प्रवेश किया। सुभाष चौक में शा. श्री प्रतापचंदजी
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मृत्यु के समय संत के दर्शन, संत का उपदेश और संघ का सानिध्य तो परम् औषधि रुप होता है।
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