Book Title: Lekhendrashekharvijayji Abhinandan Granth
Author(s): Pushpashreeji, Tarunprabhashree
Publisher: Yatindrasuri Sahitya Prakashan Mandir Aalirajpur
View full book text
________________
नेरल नगर में भव्य प्रतिष्ठा महोत्सव
नेरल नगर में जिन मंदिर की प्रतिष्ठा का वातावरण लगभग दो वर्ष से बनता चला आ रहा था। प्रयास तो अनेक किये गये थे परन्तु सफलता नहीं मिली थी और अचानक बिन प्रयास के सफलता मिल गई। वह दिन था १४ जनवरी १९८९ का। शुभ समय में शुभ निर्णय लिया गया। और अब नेरल नगर में प्रतिष्ठा का वातावरण फिर गर्म हो उठा।
___ मोहना नगर से विहार कर मुनिद्रय नेरल नगर आयें। नेरल श्री संघने मुनिराज द्वय का भावभीना हार्दिक स्वागत किया। पश्चात मुनिराज उपाश्रय में पधारे और वहाँ उपस्थित जन समुदाय को सारगर्भित प्रवचन सुनाये। प्रवचनों से प्रभावित श्री संघ के सदस्य रात्रि में मुनिराज श्री की शुभ सानिध्य में एकत्रित हुए। और प्रतिष्ठा की समस्या पर विचार विमर्श हुआ मतभिन्नता के कारण टकराव की स्थिति उत्पन्न हो गई थी श्रावक वर्ग अपनी अपनी सुना रहे थे। मुनि श्री मौन थे। रात्रि एक बजे थे समाधान नहीं हो पा रहा था। आखिर श्री संघ के सदस्यो ने मुनिराज श्री का कथन सर्वोपरि मानकर एक स्वर में कहा कि "आप श्री जो भी निर्णय देगें, उसे हम सादर मान्य करेगें और आपश्री के वचनानुसार सभी कार्यक्रम करेगें।"
दोनो मुनिराज श्री ने दोनो पक्षो के सम्बन्ध में सुनकर विचार विमर्श करने के पश्चात तटस्थ भाव से अपना निर्णय सुनाया। करतल ध्वनि और हर्षोल्लास के साथ निर्णय सर्वमान्य हो गया। खुशी के इस अवसर पर प्रतिष्ठा कराने और कब कराने का विचार चला। यह निर्णय मोहना नगर में तय किया जाना निश्चित किया गया। इस निर्णय के साथ एक अन्य निर्णय भी किया गया जिसके अनुसार वहीं जय बुलवाना तय रहा। और उपयुक्त समय पर मोहना नगर में प्रतिष्ठा के अवसर पर जय बोला दी गई थी।
और अब प्रतिष्ठा का कार्यक्रम बनाना शेष था।
२ मार्च १९८९ को मुनिराज द्रय और साध्वी मंडळ ने नेरल नगर में प्रतिष्ठा सम्पन्न कराने हेतू मंगल प्रवेश किया। प्रवेश के मंगल अवसर पर मोहना जैन मित्र मण्डल ने यहाँ आकर अपना उत्साह प्रदर्शित किया। नेरल के नागरिको में नृत्य करते युवको को देख कर आनन्द उमंग का संचार हुआ। स्वागत समारोह के पश्चात धर्मशाला में मुनिश्री ने उद्बोधन दिया। मुनिराज श्री लेखेन्द्रशेखर विजयजी ने धर्म और अर्थ के सन्दर्भमें कहा "लक्ष्मी का उपयोग यदि धार्मिक कार्यो के लिये किया जाय तो वह चार गुना होकर वापिस मिलता है।"
रात्रि १० बजे धर्म शाला में चढ़ावे बोले जाने हेतू जाजम बीछाई गई। जाजम पर उपस्थित जैन संघ के सदस्यो ने बढ़ चढ़ कर चढ़ावे बोले। शायद प्रतिष्ठा का प्रश्न रहा हो परन्तु जिन लोगो ने चढ़ावे बोले उनकी भक्ति भावना स्पष्टत: बड़ी तीव्र थी, ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे सब मन ही मन कह रहे थे। "प्रभु मुझे वह मार्ग दिखाओ जिससे मैं अपने स्वार्थ का त्याग कर पराए सुख का कारण बन सकूँ"। उनके चेहरे पर उत्फूलता की किरण चमक रही थी। ___ नेरल में नूतन जिन मंदिर की प्रतिष्ठा का मुहुर्त १७ मई १९८९ बुधवार वैशाख सुद १२ निश्चित किया गया।
- यह कार्य सुसंपन्नता पूर्वक पूर्ण कर यहाँ से विहार कर पून: कर्जत गये। कर्जत में श्रमण सूर्य पूज्य मुनिप्रवर श्री लक्ष्मण विजयजी शीतल म.सा. की पांचवी पुण्यतिथि स्मृति दिवस के
जिस हाथ से किया है, जिस हृदय से किया है, उसी हाथ और हृदय को भूगतना भी पड़ता है।
८२
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org