Book Title: Lekhendrashekharvijayji Abhinandan Granth
Author(s): Pushpashreeji, Tarunprabhashree
Publisher: Yatindrasuri Sahitya Prakashan Mandir Aalirajpur
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दोपहर में दो बजे बैण्ड, हाथी, घोड़े, इन्द्रध्वजा, सुसज्जित जीप सहित एक शानदार वरघोडे का आयोजन था। चतुर्विध श्री संघ सहित यह वरघोडा नगर के प्रमुख मार्गो से होता हुआ शाम ६ बजे पंडाल में आकर विसर्जित हुआ। इस रथ यात्रा का प्रमुख आकर्षण था महालूंगे इंगले का ढोल मंडल। जो पहले मोहना में आ चुका था। वरघोडे में श्रद्धालूजनों द्वारा अनेक जगहों पर पुष्पवृष्टि की गई।
आज के मुनिराज श्री लक्ष्मणविजयजी 'शीतल' म.सा. की पूण्यस्मृति दिन की विशेष सभा के मुख्य अतिथि श्री वालचन्दजी रामाणी थे इन्ही की अध्यक्षता में यह कार्यक्रम सूचारु रुप से सम्पन्न हुआ।
कार्यक्रम सानन्द सम्पन्न कर मुनिद्रय ने यहाँ से विहार किया और खापोली, लोनावला कामशेट होते हुए ९ अप्रेल १९८९ को प्राकृतिक छटा युक्त गांव महालूंगे इंगले में प्रवेश किया। यह किसी समय इतिहासिक गांव रहा होगा। क्योंकि यहाँ के मंदिर और प्रवेश द्वार बहुत पुराने समय के बने हुए है। जो अपनी कहानी स्वयं ही कहते है। दरवाजो की बनावट देखने से लगता है कि पुराने समय में यह किन्ही राजा महाराजाओं की गढी रही है।
यहाँ अति प्राचिन जिनमंदिर हैं। मंदिर में भगवान पार्श्वनाथजी की चमत्कारीक प्रतिमा प्रतिष्ठित है। यहाँ धर्मशाला में ठहरने की उत्तम व्यवस्था है। शा. फूटरमल खुमचन्द परिवार के आग्रह से आत्मीय स्नेह वश मुनिद्वय यहाँ पधारे थे।
मुनिराज श्री ने दिनांक १६ अप्रेल १९८९ को विचरण करते हुए टांकवा (बुदरुक) नगर में मंगल प्रवेश किया। यहाँ मुनिराजश्री के पधारने के उपलक्ष में पंचान्हिका महोत्सव का आयोजन किया था। जो १५ अप्रेल १९८९ को शुरु हो गया था। १८ अप्रेल १९८९ को महावीर जयन्ति का पर्व विशेष था। महावीर जयन्ती के पर्व पर एक वरघोडे का आयोजन किया गया था। श्री संघ के सदस्य उसी की तैयारी में लगे थे। वरघोडे में मोहना मित्र मंडळ और बैण्ड मंडळ आया था। प्रभु भगवान महावीर स्वामी की जय जयकार से यह छोटा सा गांव गुंजाय मान हो गया। वरघोडे शोभा यात्रा के बाद एक सभा का आयोजन किया गया। इस सभा के प्रमुख अतिथि थे श्री सुकनजी बाफना तथा विशिष्ठ अतिथि थे श्री चन्दनमलजी मुथा। कार्यक्रम की अध्यक्षता श्री अशोक बाफना ने की। इस सभा में मोहना बैण्ड मंडळ का नाम बदलकर 'श्री लेखेन्द्र-लोकेन्द्र बैण्ड पार्टी रखा गया।
मुनिराज श्री लेखेन्द्रशेखर विजयजी म.सा. ने महावीर जयन्ति पर अपने विचार प्रकट करते हुए उनकी वीरता, उदारता, क्षमा, धैर्य, दृढ, मनोबल, महान त्याग और केवल्य पर प्रकाश डाला। उन्होने कहा कि - "भगवान महावीर अपने युग के प्रवरतम क्रांतिकारी थे, उन्होने आचार और विचार दोनो ही क्षेत्रो में स्वयं के जीवन्त प्रयोगो द्वारा धर्म-क्रांति की।" मुनिराज श्री ने युवावर्ग की ओर इशारा करते हुए कहा कि "भगवान महावीर ने जब गृहत्याग कर सन्यास लिया था तब दे युवा ही थे, अत: युवा पीढ़ी को महावीर प्रभु के त्याग, तप, साधनामय जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिये।
"यदि वे उनका अनुसरण करे तो निस्संदेह जीवन का नक्शा नजारा कुछ और ही नजर आयेगा।"
मुनि श्री की वाणी में ओज था, जोश था, उनकी धारा प्रवाह वाणी सुनकर ऐसे लग रहा था जैसे वे क्रांति का शंखनाद कर रहे थे। अन्त में वृहत् शांति स्नात्र पुजन पढ़ाई
गई।
मुनिद्रय जहाँ भी जाते है वहाँ का वातावरण अत्यन्त ही धार्मिक हो जाता है। वे अपनी
शंका के विचित्र भूत से ही जीवन और जगत दोनों ही हलाहल हो जाते हैं।
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