Book Title: Lekhendrashekharvijayji Abhinandan Granth
Author(s): Pushpashreeji, Tarunprabhashree
Publisher: Yatindrasuri Sahitya Prakashan Mandir Aalirajpur
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कर्जत में जैन समाज में एकता एवं मोहने/कल्याण में
प्रतिष्ठा महोत्सव कर्जत में वापसी इन्दापुर से मंगल विहार कर रोहा, नागोठाणा, पेण, मोहोपाडा आदि स्थानों से विचरण करते हुए मुनिराज श्री लेखेन्द्रशेखर विजयजी एवं मुनिराज श्री लोकेन्द्रविजयजीने २२ जनवरी १९८९ को प्रात: साढे नौ बजे पुन: कर्जत नगर में मंगल प्रवेश किया। इस समय मुनिराजश्री के हृदय पटल पर एक विचार मंथन हो रहा था कि कर्जत के मंदिर के वादविवाद को किस प्रकार दुर किया जाये।
रात १० बजे मुनिराज द्रय की शुभनिश्रा में समाज की एक विशेष बैठक का आयोजन किया गया। समस्या के समाधान हेतू विवाद तो होना ही था। बैठक की प्रारंभिक चर्चा शुरु की गई। चर्चा धीरे धीरे वाद-विवाद, आरोप-प्रत्यारोप में बदल गई। स्थिति की गंभीरता को देखकर मुनिराजश्री ने हस्तक्षेप किया और मध्यस्थतापूर्वक विवादित वातावरण को गुरु कृपा से सुलझाया। उभय पक्षो की परिस्थिति को ध्यान में रखकर उचित निर्णय सुनाया। इस निर्णय को सुनकर सभी विस्मय से भर गये। इस समस्या का समाधान कितने ही आचार्यों मुनि भगवन्तोने सुलझाने की कोशीश की थी किन्तु वह सुलझने के बजाय उलझती ही चली गई। जो वादविवाद वर्षो तक किसी से नहीं सुलझा। मात्र कुछ ही देर में मुनिराजश्री ने सुलझा दिया। मन की गांठे खुल गई। सबके मुख मंडल आनन्द और प्रसन्नता से खिल उठे। समस्या का समाधान पाकर सभी एक दूसरे से गले मिले और जिनशासन देव व गुरुदेव की जय जयकार करने लगे। तप: पूत मुनिराजश्री की महानता का प्रत्यक्ष प्रमाण सबको मिल गया। खुशी खुशी बैठक समाप्त हो गई।
दूसरे दिन "समस्या का समाधान" कर्जत के समस्त जैन समाज में चर्चा का विषय बन गया। पू. मुनिराज श्री लेखेन्द्रशेखर विजयजी और मुनिराज श्री लोकेन्द्रविजयजी के इस चमत्कार से प्रभावित होकर श्री संघ ने मुनिराजश्री को निवेदन किया कि मुनिप्रवर श्री लक्ष्मण विजयजी "शीतल' महाराज सा. की पंचम पूण्य स्मृतिदिन कर्जत में ही सम्पन्न की जावे। दोनों मुनिगणने योग्य समय परिस्थिति देख कर उनकी उत्साह पूर्ण आकांक्षा को पूर्ण करने की स्वीकृति प्रदान कर दी। और कार्यकर्ताओं को पूर्ण रुप रेखा बताकर वहाँ से विहार कर दिया।
२४ जनवरी १९८९ को मुनिद्रय कर्जत से विहार कर नेरल गांव पहुँचे। यहाँ इनका भावभीना स्वागत हुआ। यहाँ पर भी मुनिद्वय ने जिन मंदिर की प्रतिष्ठा का जटील वातावरण सुलझाया। यहाँ के श्रीसंघ में सौहार्द्र वातावरण निर्मित हुआ और यहाँ के श्री संघ ने इन्ही दोनो मुनिवरों की निश्रा में प्रतिष्ठा कराने का निश्चित किया। यह है, दोनो मुनिवरों के अदभुत कार्यक्षमता का अनुपम उदाहरण।
जीवन की आडी तीरछी रेखाएँ व्यक्ति को न जाने कब किस मोड पर खडा कर देंगी कोई नहीं जानता। कलियुग में भी ऐसे अवतारी पुरुष जन्म लेते है। जिनसे अग-जग चमत्कृतं हो उठता है। जिस गति से मुनिद्वय सफलता के सोपान पार करते जा रहे है। उससे यही लगता है कि आनेवाले समय में पूरा कोंकण प्रदेश उनके गुणों से अवश्य ही प्रभावित होगा। और जिनशासन की पताका अपूर्व उचाँइयो की ओर अग्रसर होगी। कर्जत और नेरल की समस्या के उचित समाधान इसी ओर संकेत करते है।
२७ जनवरी १९८९ का दिन मोहना नगर के लिये नई रोशनी लेकर आया। मोहना का
मानव जब माया के मोह जाल में उलझ जाता है तब वह अपने अस्तित्व को भी भल जाता है।
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