Book Title: Lekhendrashekharvijayji Abhinandan Granth
Author(s): Pushpashreeji, Tarunprabhashree
Publisher: Yatindrasuri Sahitya Prakashan Mandir Aalirajpur
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मुनियों ने पगलिया जी को गांव में लाने के लिए श्री संघ को प्रेरित किया लेकिन आपसी विवादो के कारण वह संभव नहीं हुआ। पूज्य मुनिश्री ने उसको संभव कर दिखाया और वि.सं. २०४२ वैशाख शुक्ला तृतीया को पगलिया जी की छत्री बनाकर गांव में विराजमान किया गया। वहां से मुनिश्री बोरटा पधारे और फिर आहोर में प्रवेश किया। जहां साध्वीश्री चन्द्रप्रभाश्रीजीने ८१ उपवास किये जिसकी अनुमोदना का महोत्सव मुनिश्री की निश्रा में भव्य रुप में सम्पन्न हुआ।
आहोर से प्रस्थान कर श्री बामणवाड़जी तीर्थ, नांदिया तीर्थ की यात्रा करते हुए वि.सं. २०४२ का चातुर्मास दासपा नगर में किया। वहां से चातुर्मास के बाद पोसाणा पधारे एवं गुरुदेव की रितीय पुण्यतिथि गुरु लक्ष्मणधान में मनाई जिसमें आचार्य श्री लब्धिचन्द्र सूरीश्वरजी एवं श्री कमल विजयजी महाराज भी पधारे।
वि. सं. २०४३ का चातुर्मास बागरा में करने के बाद भीनमाल श्री मूलचंदजी बाफना द्वारा निर्मित प्रवचन हॉल का उद्घाटन किया। यहां से आप आचार्यश्री की आज्ञा लेकर शंखेश्वर तीर्थ पधारे। वहां आपने संकल्प किया कि मैं यहाँ तभी आऊंगा जब आपके नाम से आपकी भूमि पर कुछ निर्माण कार्य करुंगा। यहीं आपने श्री पार्श्वपद्मावती के १०८ महापूजन कराने का संकल्प भी किया। यहां से आप भिलड़ियाजी, मांढेरा, गांम्भू पार्श्वनाथ, महेसाणा आदि की यात्रा करते हुए बामणवाडा पधारे।
आप पूज्य आचार्यश्री के साथ भीनमाल पधारे जहा माध शुक्ला तेरस से चैत्र कृष्ण तेरस तक उपधान तप का कार्यक्रम श्री धेवरचंद बाबूलाल नाहर की ओर से शानदार ढंग से सम्पन्न कराया। आचार्यश्री के साथ "गुरु लक्ष्मण धाम" की ओर आपने विहार किया। वि.सं. २०४४ की नौ-पद ओली का कार्यक्रम बागरा वाले श्री सौभागमलजी ताराजी की ओर से हुआ। पूज्य आचार्यश्री ने मोहनखेड़ा चातुर्मास के लिए विहार किया और उनके साथ विहार में गोगुंदा घाट में मुनिश्री लेखेन्द्र विजयजी को दुर्घटना में चोट आई किन्तु गुरुकृपा से संभल गये। वि.सं. २०४४ वैसाख शुक्ला ६ को शंखेश्वर तीर्थ में प्रतिष्ठा का भव्य कार्यक्रम आचार्यश्री हेमेन्द्र सूरीवरजी के करकमलों से हुआ जिसकी अधिकांश जिम्मेवारी मुनिश्री ने लेकर सफलता पूर्वक निभाई। जेष्ठ शुक्ल दसमी को पादरु में गुरुदेव की मूर्ति की प्रतिष्ठा सम्पन्न की। मोहन खेडा तिर्थ मे चातुर्मास सम्पन्न कर निभाड क्षेत्र का विचरण करते हुए पूज्य गुरुदेव स्व. लक्ष्मण विजयजी की जन्मभूमि में पधारे। मालव क्षेत्र की धर्म यात्रा में जगह-जगह विशेष प्रवचन, आयोजन आदि हुए। आपकी कर्मठता, नम्रता, लगनशीलता और विद्वता से आचार्यश्री सदा प्रसन्न रहते थे।
पूज्य मुनिश्री लेखेन्द्रशेखर विजय जी का व्यक्तित्व और कतृत्व इतना महान है कि उसे शब्दों में लिपिबद्ध करना कठिन है। आपने गुरु सेवा, ज्ञानाभ्यास, व्यक्तिगत साधना आदिके साथ समाज उत्थान के लिए विभिन्न आयाम प्रस्तुत किये। युवावर्ग में धार्मिक जागरण के लिए सम्मेलन, ज्ञान शिबिर आदि लगाये। धर्म यात्रा के दौरान अपने प्रवचनों से जन-जन में भारतीय संस्कृति का संदेश पहुंचाया। सम्प्रदायवाद की संकुचित विचारधाराओं का उन्मूलन करते हुए भगवान महावीर का संदेश एवं सिद्धान्त फैलाया। परम् श्रद्धेय गुरुदेव पूज्य श्री "शीतल" जी की स्मृति में श्री मरुधर शंखेश्वर पार्श्वनाथ तीर्थ एवं श्री शंखेश्वर में श्री पार्श्वपदमावती शक्ति पीठ की
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अकार्य में जीवन बिताना गुणी और ज्ञानी जन का किंचित भी लक्षण नहीं।
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