Book Title: Lekhendrashekharvijayji Abhinandan Granth
Author(s): Pushpashreeji, Tarunprabhashree
Publisher: Yatindrasuri Sahitya Prakashan Mandir Aalirajpur
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साधना कराई जाय । पूज्यश्री लक्ष्मण विजयजी ने वि.सं. २०२६ में इसी तीर्थ में आराधना के दौरान चौबीस भुजायुक्त भगवती श्री पद्मावती देवी का साक्षात्कार किया था। अपने प्रिय शिष्य को योग्य समझकर उनमें आन्तरिक शक्ति जागृत करने का गुरुदेव का चिंतन था । चातुर्मास काल में २१ दिन की महान शक्तिसाधना गुरुदेव श्री शीतलजी ने मुनिश्री लेखेन्द्र विजयजी से करवाई। संकल्प के धनी मुनिश्री लेखेन्द्र विजयजी ने गुरु लक्ष्मण विजयजी की कृपा से कठिन साधना सफलता पूर्वक सम्पन्न की।
इस साधना को पूर्ण हुए पन्द्रह दिन भी नहीं हुए थे कि गुरुदेव ने दूसरी साधना का आदेश देते हुए कहा कि इस साधना को कर लेने के बाद तुम अन्तर और बाहर दोनों दृष्टि से सक्षम बन सकोगे और मेरे नहीं रहने पर भी तुम्हें कोई चिंता नहीं होगी। मुनिश्री भगवती पद्मावती की साधना में लीन बने और मां भगवती ने गुरुकृपा से दर्शन भी दिये। उसी दिन से उच्च कोटि के साधकों की श्रृंखला में आपका नाम भी जुड़ गया। पालीताणा से विहार कर राजस्थान के आहोर नगर पधारे। पूज्य मुनिराजश्री हेमेन्द्र विजय जी के आचार्य पद समारोह में भाग लेकर गुरुदेव श्री शीतल जी जवाई बांध पधारे जहां उनका सफल ऑपरेशन हुआ । पूज्य गुरुदेव को आयुष्य की पूर्णाहुति का भान होने लगा और उन्होंने संकेत भी दिये। जवाई बांध से विहार कर जालोर पधारे, जहां हॉर्नियां का ऑपरेशन हुआ जो असफल रहा। जालोर में वि.सं. २०४० चैत्र वदि ९ को रात्रि के ८ बजकर २५ मिनट पर उन्होंने यह पार्थिव शरीर त्याग दिया। अंतिम क्षणों में कई महत्वपूर्ण आदेश दिये। आंतरिक इच्छाओं की अभिव्यक्ति दी और विदा होते-होते कह गये "मैं जा रहा हूं, पर याद रखना अब तक मेरे दो हाथ थे लेकिन सहस्त्र हाथ हो जायेंगे। जब भी तुम्हें आवश्यकता लगे मुझे याद रखना। मै तुम्हारे लिए मौजूद रहूंगा । "हम दोनो के लिए उनका यही आशीर्वाद सम्बल है।
गुरुदेव श्री लक्ष्मण विजयजी "शीतल" के महाप्रयाण के पश्चात पूज्यश्री लेखेन्द्रविजयजी पर अनेक दायित्व आ गये। गुरुदेव के अप्रत्यक्ष आशीर्वाद और अपने मनोबल से उन्होंने मरुधर प्रदेश में धर्म - यात्रा का अभियान शुरु किया । पू. आचार्यश्री लब्धिचन्द्र सूरीजी एवं योगनिष्ठ श्री कमल विजयजी महा. की निश्रा में वि.सं. २०४१ वैशाख शुक्ला पंचमी को कोरा नगर में होने वाले प्रतिष्ठा में सम्मिलित हुए। इस अवसर पर पूज्य गच्छाधिपति आचार्यश्री हेमेन्द्र सूरीश्वरजी की आज्ञा से साध्वीश्री महेन्द्रश्रीजी अन्तेवासिनी गुणवन्ती बहन को मुनिराजश्री ने दीक्षा प्रदान की। बाकरा रोड में ज्योत्सनाबहन की दीक्षा साध्वीश्री महेन्द्रश्री की अंतेवासिनी के रुप में आपके
हुई।
स्व. पूज्य गुरुदेव की अंतिम इच्छा के अनुरूप जालोर के निकट "भागली प्याऊ नामक स्थान पर दस बीघा जमीन में वि. सं. २०४१ आषाढ़ कृष्णा १० दिनांक २४ जून १९८४ ई. को मुनिश्री लेखेन्द्र विजयजी ने "श्री मरुधर शंखेश्वर पार्श्वनाथ जैन तीर्थ गुरु लक्ष्मण धाम " तीर्थ की स्थापना की। इस वर्ष का चातुर्मास भीनमाल के निकट जुंजाणी गांव में हुआ । ३० घरों की वस्ती में पर्युषण में ९० अट्ठाईयां हुई। यह चातुर्मास अनेक दृष्टियों से ऐतिहासिक रहा । मगसर सुदि ३ को श्री लक्ष्मण धाम का भूमिपूजन कर कार्य प्रारम्भ हो गया। गुरुदेव की प्रथम पुण्यतिथि श्री गुरु लक्ष्मण धाम में भव्यरुप में मनाई गई। यहां से पाथेड़ी नगर पधारे। यहां ३०० वर्ष प्राचीन श्री गोडी पार्श्वनाथ प्रभु के पगलिये गांव के बाहर स्वतंत्र रूप से निर्मित मंदिर में विराजमान थे। जहां अशुद्धियां होने लगी। पिछले ७० वर्षो से अनेक आचार्यो,
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अंतर में जब अधीरता हो तब आराम भी हराम हो जाता है।
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