Book Title: Lekhendrashekharvijayji Abhinandan Granth
Author(s): Pushpashreeji, Tarunprabhashree
Publisher: Yatindrasuri Sahitya Prakashan Mandir Aalirajpur
View full book text
________________
भावना से यह चातुर्मास उपयोगी रहा। गुरुदेव के साथ ही वि.सं. २०३१ का चातुर्मास नागदा एवं सं. २०३२ का चातुर्मास महीदपुर में किया। हिन्दी, संस्कृत आदि भाषाओं के साथ धार्मिक ग्रन्थों का अध्ययन चलता रहा। महीदपुर का चातुर्मास सम्पन्न कर श्री मोहन खेड़ा तीर्थ पहुंचे और वहां से गुरुदेव के साथ मुनिश्री ने वि.सं. २०३३ का चातुर्मास राजस्थान के भीनमाल शहर में किया।
भीनमाल का यशस्वी चातुर्मास सम्पन्न कर तत्कालीन त्रिस्तुति संघ के आचार्य श्रीमद् विजय विद्याचन्द्र सरीश्वरजी की सेवा में उपस्थित हुए। वहाँ आचार्यश्री की आज्ञानुसार बृहद योगोध्वन विधि प्रारम्भ की। मुनिश्री के साथ अन्य नौ श्रमण - श्रमणिया भी उस समय योग कर रहे थे। पावन तीर्थ की स्थली श्री भांडवपुर में वि. सं. २०३३ माध शुक्ला तृतीया को पूज्य आचार्यश्री के कर-कमलों द्वारा आपकी बृहद् दीक्षा सम्पन्न हुई। पूज्य आचार्यश्री की आज्ञा से मुनिप्रवर श्री लक्ष्मण विजयजी "शीतल" के साथ मरुधर प्रदेश में आपने विचरण किया। मरुधर प्रदेश के मुंणाणी नगर में आप पधारे। छोटा नगर होते हुए भी श्री संघ की भावना महान थी। उन्हें जब जानकारी मिली कि मुनिश्री लेखेन्द्र विजयजी के लघुभ्राता श्री कवीन्द्र कुमार दीक्षार्थी के रुप में साथ हैं तो जुणांणी श्री संघ के आग्रह पर वहां वि.सं. २०३४ जेष्ठ कृष्णा ६ रविवार दिनांक ८ मई. ७७ को कवीन्द्र कुमार की दीक्षा सम्पन्न हुई और इन पक्तियों का लेखक मुनिश्री लोकेन्द्र विजय के नाम से जाना जाने लगा। मुनिश्री लेखेन्द्र विजय जी की दीक्षा के चार वर्षों के बाद उनके लघुभ्राता भी जेष्ठ कृष्णा ६ को ही दीक्षित हुए।
दीक्षा के बाद मैं अपने बड़े भाई मुनिश्री लेखेन्द्र विजयजी एवं पूज्य गुरुदेव श्री लक्ष्मण विजयजी के साथ विचरण करने लगा। वि.सं. २०३४ का चातुर्मास राजस्थान के आकोली नगर में किया। चातुर्मास सम्पन्नता के बाद सियाणा नगर से भुरजी-भलाजी का मकसर वदि पंचमी को संघ प्रयाण कराया। पूज्य आचार्यश्री के आदेशानुसार मोहनखेड़ा पहुंचे जहां वि.सं. २०३४ को भव्य प्रतिष्ठा महोत्सव सम्पन्न हुआ। वि.सं. २०३५ का चातुर्मास थांदला में किया। इसी चातुर्मास में मुनिश्री लेखेन्द्र विजयजी के मन में आत्म साधना के साथ समाज विकास के लिए रचनात्मक कार्य की भावना जगी।
समग्र मध्य प्रदेश का दो दिवसीय युवक सम्मेलन बुलाया गया। दहेज प्रथा, मृत्युभोज आदि कुप्रथाओं एवं रुढ़ियों के उन्मूलन की इसमें प्रेरणा दी गई। बालक-बालिकाओं के ज्ञान शिबिरो का आयोजन किया गया। "ज्ञान-प्रकाश' एवं "ज्ञान मंदिर" नामक दो प्रश्नोत्तरी पुस्तकें लिखीं। थांदला चातुर्मास सामाजिक गतिविधियों की दृष्टि से एवं युवा जागरण की दृष्टि से ऐतिहासिक रहा। नि:शुल्क सम्यक्ज्ञान का साहित्य प्रकाशित करने के लिए वि.सं. २०३५ पोष कृष्ण पंचमी को पूज्य मुनिप्रवर श्री शीतलजी की शुभ निश्रा में " श्री यतीन्द्रसूरी साहित्य प्रकाशन मंदिर" की आलीराजपुर में स्थापना की गई।
पूज्य गुरुदेव श्री शीतलजी के साथ मुनिश्री लेखेन्द्र विजयजी की भावना हुई कि दक्षिण भारत में विहार किया जाए और आचार्यश्री से आज्ञा प्राप्त कर दक्षिण प्रयाण का शुभ संकल्प किया। पूज्य आचार्यश्री की आज्ञा से वि.सं. २०३५ माघ शुक्ला ६ को कड़ोद में श्री नमीनाथ जिन मंदिर एवं श्रीमद् विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजी गुरु मंदिर की प्रतिष्ठा धूमधाम से करवाई। प्रतिष्ठा कार्यक्रम का संचालन मुनिश्री लेखेन्द्र विजयजी ने किया।
दक्षिण प्रयाण के लिए तीर्थ भूमि श्री मोहनखेड़ा से वि. सं. २०३५ माध शुक्ला चतुर्दशी
अनन्त पाप के बोझ से जिसका ज्ञान विलुप्त हो जाता है वे कभी भी समझदारी पा नहीं सकते।
६५
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org