Book Title: Lekhendrashekharvijayji Abhinandan Granth
Author(s): Pushpashreeji, Tarunprabhashree
Publisher: Yatindrasuri Sahitya Prakashan Mandir Aalirajpur
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आदि उपस्थित थी। उनके समक्ष भी इन्दापुर श्री संघ ने महाराष्ट्र प्रदेश में पधारने की विनम्र विनंती की। उन्होने भी आचार्य श्री का आदेश प्राप्त कर महाराष्ट्र प्रदेश में आना स्वीकार किया। इन्दापुर श्री संघ की यह भावना भी पूरी हुई!
इसे सहज संयोग ही कहा जायेगा, कि ठीक १० वर्ष पूर्व इसी मोहनखेडा तीर्थ से माघ शुक्ला १४ संवत् २०३५ दि. १० फरवरी सन १९७९ को प.पू. मुनि प्रवर श्री लक्ष्मण विजयजी "शीतल" म.सा.ने अपने दोनो शिष्यरत्नों सहित दक्षिण भारत की ओर मंगल विहार कर समग्र दक्षिण भारत की यात्रा की थी।
आज ठीक १० वर्ष बाद फिर इसी मोहन खेडा तीर्थ पावन धरा से पुन: दक्षिण भारत में सुप्त धर्म भावना को जगाने धर्म भावना को तीव्र करने और जिनशासन देव की प्रभावना के लिये मुनिद्वय, मुनिराज श्री लेखेन्द्रशेखर विजयजी तथा मुनिराज श्री लोकेन्द्र विजयजी म.सा. ने संवत् २०४५ मगसर वद २ शुक्रवार दिनांक २५ नवम्बर १९८८ को पूज्य दादा गुरुदेव का पावन आशिर्वाद प्राप्त कर प्रात: ८ बजे मंगल प्रयाण किया। और इनके साथ ही प्रयाण किया साध्वीश्री पुष्पाश्रीजी, साध्वीश्री हेमप्रभाश्रीजी, साध्वीश्री तरुणप्रभाश्रीजी, साध्वीश्री रत्नरेखाश्रीजी, साध्वीजीश्री दर्शनरेखाश्रीजी, साध्वीश्री अनुभवदृष्टाश्रीजी आदि ठाणा ने।
यह धर्मयात्रा प्रदीर्घ थी। श्री मोहनखेडा तीर्थ को प्रणाम कर मालवा की शस्य श्यामला भूमि, शांत निर्मल वात्सल्य से परिपूर्ण नर्मदा के आंचल को छोडकर मुनिद्रय रींगनोद, टांडा बाग कुक्षी, अंजड सेंधवा आदि मध्यप्रदेश के गांवो नगरों में जिन शासन की प्रभावना करते हुए अपनी मंजिल की ओर निरंतर अबाध गति से विचरण करते हुए महाराष्ट्र की सीमा में प्रवेश किया।
पुखराज एस. जैन
कल्याण
.लोग सदैव शांति और चैन से जीने की इच्छा वाले होते हैं। सुख शांति का प्रशस्त मार्ग बताने वालों को जनता सदैव सिर-मुकुट के समान समझती है और उनका अनुसरण करती हैं।
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अकार्य में जीवन बिताना गुणी और ज्ञानी जन का किंचित भी लक्षण नहीं।
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